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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [१४५ ] b02999999タクタクなP2099DSCoffsetOSかなるitenages oooooooooootes इमिणा और पक्षान्तर में इमेण; एतेन = एदिणा और पक्षान्तर में एदेण; केन=किणा और पक्षान्तर में फण; येन-जिणा और पनान्तर में जेग; तेनतिणा और पक्षान्तर में तेग रूप होते हैं। अनेन संस्कृत तृतीया एकवचनान्न पुल्जिग सवनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप इमिणा और इमेण होते हैं। इनमें सत्र संख्या ३७२ से मूल संस्कृत शब्द 'इदम्' के स्थान पर प्राकृत में इम' बादेश का प्राप्ति; और ३.६६ से प्रथम रूप में प्राप्तोग 'इम' में नृतीया विभक्ति के एकवचन में पुल्जिग में संस्कृतोय प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकून में वैकल्पिक रूप से डिणा-इणा' प्रत्यय की प्रादेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप इमिणा सिद्ध हो जाता है। द्वतीय रूप इमेण में उपरोक्त ३-७२ के अनुमार प्राप्तांग 'इम' में मत्र-संख्या ३.१४ से अन्स्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे नृतीया विभक्ति एकवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाक होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से पूर्वक्ति गति से पापा 'इमे' में तृतीया विभक्ति के वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'टा' के स्थान पर ' प्रत्यय का श्रादेश-प्राप्ति हो कर द्वितीय रूप इमण भी सिद्ध हो जाता है। एतेन संस्कृत तृतीया एकवचनात पुल्जिग सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप पदिणा और एदेण होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'एतद्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'दु' का लोप; ४.२६० से 'न' के स्थान पर को प्राप्ति और ३-६६. से प्रथम रूप में 'ए' में हनीया विभक्ति के एकवचन में पुल्जिग में संस्कृतीय प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में बैकल्पिक रूप से 'डिणा=इणा' प्रत्यय की प्रादेश-प्रारित होकर प्रथम रूप पदिणा सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-( एतेत- ) एदेण में उपरोक रीति से प्राप्तांग 'पद' में सूत्र संख्या ३-१४ से अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे तृतीया विभक्ति एकवचन बोबक पत्यय का सद्भाव होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३.६ से 'एने' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय टा' के स्थान पर '' प्रत्यय की ( आदेश ) प्राप्ति होकर द्वितीय रूप एदेण सिद्ध हो जाता है फेन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिग के सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप किणा और कंण होने हैं। इनमें से प्रथम रूप में सब-संख्या ३.७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर प्राकृत में 'क' अंग की प्रादेश-प्राप्ति; और ३.६८ से प्राप्तांग 'क' में तृतीया विभक्ति के एकवचन पुल्लिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डिशा = इणा प्रत्यय को प्रादेश-प्राप्ति होकर प्रथम रूप किणा सिद्ध हो जाता है। 'केण' की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४१ में को गई है। येन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप जिणा और जेण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'यद्' में स्थित अन्त्य हलन्त च्यञ्जन 'द' का लोप; १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति और ३-६६ से प्राप्तांग 'ज' में तृतीया
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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