SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ ] * प्राकृत व्याकरण ॐ 69♠♠00460 44444444 राज्ञः संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन का रूप हैं। इसका प्राकृत रूप राहणो होता है। इसमें उपरोक्त प्रीति से हो सूत्र संख्या ३-५० और ३- २२ से साधनिका की प्राप्ति होकर राइणो रूप सिद्ध हो जाता है । इण पंचम्यन्त एकवचन और षष्टयन्त एकवचन रूप है। इसकी सिद्धि सूत्र संख्या ३.५० में की जा चुकी है। विन्ति रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१० में की गई है। च्छ रूप को सिद्धि सूत्र संख्या १-१३ में की गई है । आओ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१०९ में की गई है। धर्ण रूप की सिद्धि सूत्र-संयो०-५० में की गई है। कथं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१६ में की गई है । राणा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-५१ में गई है । 'वा' अध्यय की सिद्धि सूत्र - संख्या १-६७ में की गई है। राशि अथवा राजाने संस्कृत सप्तम्यन्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप राहम्मि और रायमि होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में 'राई' अंग की प्राप्ति सूत्र संख्या ३-५८ में वर्णित साधनिका अनुसार (और तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३०९९ से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'किम' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप इम्म सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप- (राशि अथवा राजनित्र) रायमि में 'राय' अंग की प्राप्ति सूत्र संख्या ३-५० में वर्णित साधनिका के अनुसार और तत्पश्चात् सूत्र- संख्या ३-११ से प्रथम रूप के समान ही 'म्मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप रामि भी सिद्ध हो जाता है । 'रायाणी' (प्रथमान्त-द्वितीयान्त रूप) की सिद्धि सूत्र संख्या ३-५० में की गई है। रणी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३०५० में की गई है । राज्ञा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप रायणा और रायगण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में 'राय' अंग की प्राप्ति सूत्र संख्या ३-५० में वर्णित साधनिका के अनुसार और तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-५९ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'णा' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप रापणा सिद्ध हो जाता है । +
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy