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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ १०१ इर्जस्य णो-णा-ङो ॥ ३-५२ ॥ राजन शब्द संबन्धिनो जकारस्य स्थाने णो-गा-किस परेषु इकारी वा भवति ॥ राइणो चिट्ठन्ति पेच्छ आगो धणं वा ॥ राइणा कयं । राहम्मि । पक्षे । रायाणो । रपणो। रायणा | राएग । रायम्मि । __ अर्थ:-संस्कृत शब्द 'राजन' के प्राकृत रूपान्तर में (प्रथमा बहुववन में, द्वितीया बहुवचन में, पंचमी एकवचन में और षष्ठी एकवयन में प्राप्तव्य प्रत्यय) णो; (तृतीया एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय) णा और सप्तमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'झि' के स्थानीय रूप 'म्मि' परे रहने पर (मूल संस्कृत शब्द 'राजन' में स्थित) 'ज' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'इ' को प्राप्ति होती है । जैसे:-- राजानः तिष्ठन्ति-राक्षणो चिट्ठन्ति अर्थात् राजा गण ठहरे हुए हैं। राज्ञः पश्य-राइणो पेच्छ अर्थात राजाओं को देखो। राज्ञः आगतः राइणो भागश्रो अर्थात राजा से आया हुआ है । राज्ञः धनम् राइणो धणं अर्थात राजा का धन । इन उदाहरणों से विदित होता है कि-प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन में और पंचभी षष्ठी के एकवचन के प्राप्तव्य प्रत्यय 'णो' के पूर्व में राजन' शब्द में स्थित 'अ' के स्थान पर 'इ' की यादेश प्राप्ति हुई है । '' प्रत्यय का उदाहरण इस प्रकार है:- राज्ञा कृतम्-रापणा कयं अर्थात् राजा से किया हुआ है । इसी प्रकार से 'द्धि' प्रत्यय के स्थानीय रूप 'म्मि' का उदाहरण इस प्रकार है:रोज्ञि-अथवा राजनि-राइम्मि अर्थात् राजा में । इस प्रकार तृतीया के एकवचन में और सप्तमी के एकवचन में कम से प्राप्त 'या' प्रत्यय और 'मिम' प्रत्यय के पूर्व में 'राजन' शब्द में स्थित 'ज' के स्थान पर 'इ' की आदेश-प्राप्ति हुई है । वैकल्पिक पक्ष होने से जहाँ प्राप्त प्रत्यय 'गो', 'णा' और म्मि' प्रत्ययों के पूर्व 'राजन' शब्द मे स्थित्त 'ज' के स्थान पर 'इ' आदेश-प्राप्ति-नहीं होगो; वहाँ राजन शहर के रूप उपरोक्त विमक्तियों में इस प्रकार होंगे: राजानः = शयाणो अर्थात् राजा गण । राज्ञः-रायाणो अर्थात राजाओं को । राज्ञः = रणो अर्थात् राजा से । राशः-रएणो अर्थात राजा का । राज्ञा-गयणा अथवा राएण अर्थात् राजा द्वारा या राजा से । राशि या राजनि-रायम्मि अर्थात् राजा में श्रथवा राजा पर । इन आहरणों में यह प्रदर्शित किया गया है कि 'णो', णा' और म्मि' प्रत्ययों के प्राप्त होने पर भी वैकल्पिक पक्ष होने से 'राजन' शब्द में स्थित 'ज' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति नहीं हुई है। यो वृत्ति में वर्णित शब्द 'इकारो वा' का अर्थ जानना । 'राजाम संस्कृत प्रथमान्त बहुष धन का रूप है । इसका प्राकृत रूप राइणो होता है । इसमें 'राइ अंग की प्राप्ति सूत्र-संख्या ३.५० में वर्णित साधनिका के अनुसार और तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-२२ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'गो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर राइणो सिद्ध हो जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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