SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० ] 000000000000 * प्राकृत व्याकरा * ***********÷÷÷$666664 $❖❖❖++++++* हलन्त व्यञ्जन 'न्' का लोप; १-१७७ से 'ज' का लोप १-१८० से लोप हुए 'ज' के पश्चात् शेष रहे हुए '' के पर 'य' की प्राप्ति १००० से ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङस्' के स्थान पर प्राकृत में 'रस' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तृतीय रूप रायस्स भी सिद्ध हो जाता है । धनम् संस्कृत प्रथमान्त एकवचन को रूप है। इसका प्राकृत रूप वर्ण होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्तिः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में संस्कृती प्राप्तब्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'मू' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार को प्राप्ति होकर धक रूप सिद्ध हो जाता है । ३-४० ॥ टा खा ॥ ३-५१ ॥ राजन् शब्दात् परस्य दा इत्यस्य णा इत्यादेशो वा भवति ।। राइगा । रपणा पक्षे रापण कयं || अर्थः--संस्कृत शब्द 'राजन' के प्राकृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर वैकल्पिक रूप राशा कृतम् - राहणारया (अथवा ) राण कथं; में 'णा' आदेश का प्राप्ति हुई है । रूपान्तर में तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय ''णा' आदेश की प्राप्ति हुआ करती हैं। जैसे:अर्थात् राजा से किया हुआ है। यहां प्रथम दो रूपों राज्ञा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप राहणा, रण्णा और राण होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में 'राह' अंग प्राप्ति सूत्र संख्या ३-५० में वर्णित साधनिका के अनुसार; तत्पश्चात सूत्र संख्या ३५१ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'दा' के स्थान पर प्राकृत में 'णा' आदेश प्राप्त प्रत्यय की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति होकर प्रथम रूप राहणा सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप- (राज्ञा) रखा में 'रण' अंग की प्राप्ति सूत्र संख्या ३-५० में वर्णित साधनिका के अनुसार तत्पश्चात् सूत्र- मंख्या ३-४१ से तृतीया विभक्ति के एकवचन प्रथम रूप के 'गा' आदेश प्राप्त प्रत्यय की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति होकर द्वितीय रूप-रण्णा भी सिद्ध हो जाता है । समान ही तृतीय रूप- (राशा = ) राएण में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'राजन' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'न्' का लोप; १-१७७ से 'जू' का लोप; ३-१४ से प्राप्तांग 'श' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'आगे तृतीया विभक्ति के एकवचन का प्रत्यय रहा हुआ होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से प्राप्तांग 'राए' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतोय प्राप्तव्य प्रत्यय 'दा' के स्थान पर 'क' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तृतीय रूप राएण सिद्ध हो जाता है । 'क' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११६ में की गई है । ।। ३-५१ ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy