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________________ 4 ************ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 1044009440 [ ६६ **** राज्ञः संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप राहणो, रखो, रायाओ, राया गयाहि, रायाहिन्तो और राबा होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'राजन' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यखन 'न' का लोपः ३२२ से 'ज' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'इ' की प्राप्ति और ३-५० से पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में बैकल्पिक रूप से 'णो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप राहणी सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप- ( राज्ञः = ) ग्राणो में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'राजन' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'न' का लोप ३-५५ से से शेष रूप 'राज' में स्थित 'आज' के स्थान पर प्राकृत में बैकल्पिक रूप से 'अ' की प्राप्ति और ३-५० से प्राप्तांग 'र' में पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'इसि' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'पो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप 'रण' सिद्ध हो जाता है । रायाड, रायाहि, रायाहिन्तो अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'न्' का रहे हुए 'छ' के स्थान पर 'य' तृतीय रूप से सात रूप तक में अर्थात् - (शक्षः) रायाची, 'और राधा में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'राजन् ' में स्थित लोप; १-१७७ से 'अ' का लोपः १-९८० से लोप हुए 'न्' के पश्चात् शेष की प्राप्ति; ३-१२ से प्राप्तांग 'राय में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे पंचमी विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय रहे हुए होने से' दीर्घ स्वर 'या' की प्राप्ति एवं उसे प्राप्तांग 'राया' में पंचमी विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय उ-हि हिन्तो और लुक' की क्रम से प्राप्ति होकर कम से रायाजी सचाज, रायाहि रायाहिन्तो और राया रूप सिद्ध हो जाते हैं । 'आग' रूप को सिद्धि सूत्र संख्या १-१०९ में की गई है । राज्ञः संस्कृत पष्ठन्त एकवचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप राइयो, रणो और रामरत होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सुत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'राजन' में स्थित अन्य हलन्त व्यञ्जन 'न' का लोप ३-५२ से शेष रूप 'राज' में स्थित 'ज' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति और ३-५० से षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'ङस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'जो' प्रत्यय को प्राप्ति होकर प्रथम रूप राहणी सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप- (राज्ञः = ) रणो में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'राजन' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'न' का लोप ३-५५ से शेष रूप 'रोज' में स्थित 'आज' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'अणू की प्राप्ति और ३-५० से प्राप्तोग 'रण' में षच्छी विभक्ति के एकवचन में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'क' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'जो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप-रण भी सिद्ध हो जाता है । तृतीय रूप-( राक्षः =) रायरस में सूत्र- संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'राजन' में स्थित धन्य
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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