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________________ * प्राकृत व्याकरण में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप एकल्ली सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(एक) एककल्ली में सूत्र संस्पा २-१९ से 'क' के स्थान पर विस्व 'क' की प्राप्ति और शेष सानिका प्रथम रूप के समान हो होकर द्वितीय रूप एककल्लो सिद्ध हो जाता है। तृतीय रूप एक्को पुर्ण रुपएको सो infoया २-१ गई है ॥ २-१६५ ।। उपरेः संन्याने ॥२-१६६॥ संव्यानेर्थे वर्तमानादुपरि शब्दात् स्वार्थे ल्लो भवति ।। अबरिल्लो ॥ संध्यान इति किम् । श्रवरि ॥ अर्थ:-'ऊपर का कपड़ा' इस अर्थ में यदि 'उपरि' शब्द रहा हुआ हो तो 'स्त्र-अयं' में 'उपरि' शम्ब के साप 'लक' प्रत्यय की प्राप्ति होती है । जैसे:-उपरितनः अबरिल्लो । प्रश्न:-संध्यान-ऊपर का कपडा' ऐसा होने पर हो उररि-उपरि' के साथ में 'ल' प्रत्यय की प्राप्ति होती है ऐसा प्रतिबंधात्मक उल्लेख क्यों किया गया है? उत्तर:-यदि उपरि' शब्द का अर्थ 'ऊपर का कपड़ा नहीं होकर केवल ऊपर' सूचक अर्थही होगा तो ऐसी स्थिति में स्व-अयं बोथक 'ल्ल' प्रत्यय को प्राप्ति प्राकृत साहित्य में नहीं देखी जाती है। इसीलिये प्रतिबंधात्मक उस्लेख किया गया है। जैसे:-उपरि अवरि ।। उपरितमः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप-(स्वार्थ-बोषक प्रत्यय के साथ) अवरिलो होता है इसमें सूत्र संख्या १-२३१ से 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; १-१०७ मे 'उ' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति, २-१६६ से संस्कृत स्व-अर्थ बोषक प्रत्यय 'सन' के स्थान पर प्राकृत में 'एल' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बधन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि प्रत्यय के स्थान पर 'ओं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अपरिल्लो हप सिद्ध हो गाता है। अवारं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-75 में की गई है ॥२-१६६३॥ भ्रवो मया डमया ॥२-१६७|| भ्र शब्दात् स्वार्थे मया डमया इत्येतो प्रत्ययौ भवतः॥ मया । भमगा । अर्थ:-'भ्रू' शम्ब के प्राकृत रूपान्तर में 'स्व अर्थ में कभी 'मया' प्रत्यय आता है और कभी 'मया' (अमया)-प्रत्यय आता है। 'मया' प्रत्यय के साथ में 'भ्रू' शब्द में स्थित अन्स्य उ' को इत् संज्ञा नहीं होती है। किन्तु 'उमया प्रत्यय में आदि में स्थित 'इ' इसंज्ञक है; अतः 'उमया' प्रत्यय की प्राप्ति के समय में 'भू राम में स्थित अन्य '' को संज्ञा हो जाती है। यह अन्तर ध्यान में रपना जाना चाहिये । उदाहरण इस प्रकार हैधूः= भुमया अथवा भमया ।।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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