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________________ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित - [४६७ भुमया रूप को सिद्धि पत्र संख्या १-१२१ में की गई है। श्रः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप (स्व- अबोधक प्रत्यय के साथ भमया होता है। इसमें सूत्र संख्या २.७९ से 'र' का लोप; २-१६७ से स्व-अ' में प्राप्त प्रत्यय 'डप्पा' में स्थित 'इ' इत्यंजक होने से प्राप्त 'भू' में स्थित अन्य स्वर 'अ' को संज्ञा होकर 'अमया' प्रत्यय को प्राप्ति, १.५ से हलन्स 'म' में 'रममा प्ररप में से मवशिष्ट 'अम्पा' के 'अ' को संघि; और १-११ से अन्य व्यजन रूप विसर्ग का लोप होकर भमया हा सिद्ध हो जाता है।॥ २-१६७।। . शनै सो डिअम् ॥ २-१६ ॥ शनैस् शब्दात् स्वार्थे डिअम् भवति ।। सणिअमवगूढो ॥ अर्थः-संस्कृत शब्द 'शन' के प्राकृत कमान्तर में 'स्व-' में 'डिअम्' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। "डिअम्' प्रत्यय में आदि '' हरसंक होने पे 'श' के 'ऐ'बर को इत्संझा होकर अम् प्रत्यय की प्राप्ति होती हूं। जैसे:-शनैः अवगूढः सगिअम् अवगूढो अथवा सपिअमवादो। झनैः (शस्) संस्कृत अव्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप समिश्रा होता है। इसमें म संख्या १-२६० से '' के स्थान पर 'सको प्राप्ति; १-२९८ से 'न' के स्थान पर 'ग्' को प्राप्ति; २-१६८ से 'स्व-अयं' में 'रिम्' प्रत्यय को प्राप्ति प्राप्त 'डिअम् प्रत्यय में 'इसंज्ञक होने से 'ए' स्वर को इस्संज्ञा अर्थात् लोप; १-११ से अन्त्य व्यञ्जन विलग रूप ' का लोप; और १.५ से प्राप्त रूप 'सग्में पूर्वो इस को संषि होकर सणिजम् रूप सिस हो जाता है। अवगूढः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप भवगूढो होता है। इसमें सत्र संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक पजन में अकारान्त पुल्लिण में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर अवगूढी सप सिद्ध हो जाता है ।। २-१६८ ।। मनाको न वा डयं च ॥ २-१६६ ॥ मनाक् शब्दात् स्वार्थे डयम् डिअम् च प्रत्ययो वा भवति ।। मगयं । मणियं । पक्षे । भण।।। अर्थ:-संस्कृत अध्यय रूप मनाक के प्राकृत रूपान्तर में स्व-अयं में वैकल्पिक रूप से कभी 'व्य प्रत्यय को प्राप्ति होती है, कभी जिम्' प्रत्यय की प्राति होती है और कभी-कभी स्व-अर्थ में किसी भी प्रकार के प्रत्यय की प्राप्ति नहीं भी होती है जैसे:-मना = ममयं अथवा मणिपं और वैकल्मिक पक्ष में मणा जानना । मनार संस्कृत अव्यय रूप है । इसके प्राकृत-रूप (स्व-अप बोधक प्रत्यय के साथ) -प्रणय, मणियं और मगा होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ग्' की प्राप्ति, १-११ से अन्य हलम्स म्यञ्जनका लोप,
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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