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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ ४२५ रूप से होती है; श्रादेश- राप्त रूप में साधनिका का प्रभाव होता है। ये तीनों रूप प्रथमान्त हैं; अत: इनमें सूत्र संख्या ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक जिंग में मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर ये प्रथम तीनों रूप थोक, थोवं और थेव सिद्ध हो जाते हैं । चतुर्थ रूपयो की सिद्धि सूत्र संख्या २-४५ में की गई है। दुहितृभगिन्योर्धू या बहिण्यौ ॥२- १२६ ॥ थानयोरेतावादेशौ वा भवतः ॥ एष दुडिया | बहिणी भइणी ॥ - अर्थ:-संस्कृत शब्द दुहितृ - ( प्रथमान्त रूप दुहिता) के स्थान पर वैकल्पिक रूप से प्राकृत भाषा में आदेश रूप से धूल की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार से संस्कृत शब्द भगिनी के स्थान पर भी वैकल्पिक रूप से प्राकृत भाषा में आदेश रूप से 'बहिणी' की प्राप्ति होती है। जैसे:- दुहिता = धूश्रा अथवा दुहिया और भांगनी = बहिणी अथवा भइणी ।। दुहिता संस्कृत रूप है । इसके प्ररकृत रूप धूश्रा और दुहिश्र होते हैं । प्रथम रूप में सूत्र - संख्या २-१२६ से संपूर्ण संस्कृत शब्द दुहिता के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'धूश्रा' रूप आदेश की प्राप्ति; अतः साधनिका का अभाव होकर प्रथम रूप आ सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप - ( दुहिता = ) दुहिश्रा में दुहिश्र की सिद्धि हो जाती है । सूत्र संख्या १-१७७ से 'तू का लोप होकर द्वितीय रूप भगिनी संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप बहिणी और भइणो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-१२६ से संपूर्ण संस्कृत शब्द भगिनी के स्थान पर वैकल्पिक रूप से वहिणी' रूप आदेश को प्राप्तिः श्रतः साधनिका का अभाव होकर प्रथम रूप बहिणी सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप- (भगिनी = ) भइणी में सूत्र संख्या १-१७७ से 'गु' का लोप और १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप भइसी भी सिद्ध हो जाता है ||२-१२६॥ वृक्ष - क्षिप्तयो रुक्ख बूढो २- १२७॥ वृक्ष - क्षिप्तयोर्यथासंख्यं रुक्ख छूढ इत्यादेशौ वा भवतः । रुक्खो वच्छी । छूढं खिः । उच्छूडं | उक्खि ॥। अर्थः- संस्कृत शब्द वृक्ष के स्थान पर वैकल्पिक रूप से प्राकृत भाषा में आदेश रूप से 'रुख' की प्राप्ति होती हैं। जैसे:: -- वृक्षः = रुक्खो अथवा बच्चो ।। इसी प्रकार से संस्कृत शब्द क्षिप्त के स्थान
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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