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________________ ४२६ * प्राकृत व्याकरण * HORD पर भी वैकल्पिक रूप से प्राकृत-भाषा में श्रादेश-रूप से 'शून' की प्राप्ति होती है । जैसे:-ज्ञिप्तम् = 'छूढ़' अथवा खितं ॥ दूसरा मारा इस कार है :---परिवाना . उन्बूलं का उक्खित्त ।। वृक्षः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप रुक्खो और वच्छो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्रसंख्या -१२७ से 'वृक्ष' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'रुख' आदेश की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप रुक्रवो सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप पच्छो की सिद्धि सूत्र संख्या २-१७ में की गई है। क्षिप्तम संस्कृत विशेषण रूप हैं। इसके प्राकृत रूप छूदं और खित्त होते हैं। इनमें से प्रथम रूप छूढ़ की सिद्धि सूत्र-संख्या २-१६ में की गई है । द्वितीय रूप-(क्षिप्तम् ) खित्त में सूत्र-संख्या २-३ से 'क्ष' के स्थान पर ख' का प्राप्ति; -33 से 'पू' का लोप; २-८६ से शेष रहे हुए 'त' को द्वित्व 'त' की प्राप्तिः ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर द्वितीय रूप खित्तं भी सिद्ध हो जाता है । __ उत्क्षिप्तम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसके प्राकृत रूप उच्चूदं और उ.क्त होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-१२७ से संस्कृत शब्दांश 'क्षिप्त' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से श्रादेश रूप से 'क्रूट' की प्राप्रि; २.८८ से प्राप्त 'ढ' में स्थित 'छ' वर्ण को द्वित्व 'छ छ' का प्राप्ति; २.६० से प्राप्त पूर्व 'र' के स्थान पर 'च' की प्राप्ति; २-६४ से हलन्त व्यञ्जन 'त' का लोप; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुग्वार होकर प्रथम रूप उच्ढे सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(उरिक्षातम्=) उदिखत्ते में सूत्र-संख्या २-७७ से प्रथम हलन्त 'त्' और हलन्त 'प' का लोप; :-३ से 'क्ष' फे स्थान पर 'ख' की प्राप्तिः २-८८ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'ख ख' की प्राप्ति; २.६० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्राप्ति; पुन से लोप हुए 'प' में से शेष रहे हुग 'त' को द्वित्व 'त' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान हो होकर द्वितीय रूप उकिरखस भी सिद्ध हो जाता है ।।२-१२७॥ वनिताया विलया ॥२-१२८॥ वनिता शब्दस्य विलया इत्पादेशो वा भवति ॥ विलया वणिया ॥ विलयेति संस्कृते पीति केचित् ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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