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________________ * प्राकृत व्याकरण * से प्रथम 'ल' के स्थान पर ज' की प्राप्ति; १-१६५ से 'ट' के स्थान पर 'ड' की प्रामि; ३-२५ से प्रश्नमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' को अनवार होकर द्वितीय रूप णलाई भी सिद्ध हो जाता है ।।२. १२३।। ह्ये ह्योः ॥२-१२४॥ ह्यशब्दे हकारयकारयोर्व्यत्ययो वा भवति ।। गुह्यम् । गुरहं गुज्झ ।। सह्यः । सम्हो सझो अर्थ:-जिन संस्कृत शम्शे में 'ह्य' व्यजन रहे हुए हों तो ऐसे संस्कृत शब्दों के प्राकृत रूपान्तर में 'ह' वर्ण का और 'य' वर्ण का परस्पर में वैकल्पिक रूप से व्यत्यय हो जाता है । जैसे:-गुह्यम् = गुरई, अथवा गुज्झ और सह्यः = सयदो अथवा सझो !! इत्यादि अन्य शब्दों के संबंध में भी यही स्थिति जानना ।। गुह्यम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप गुरई और गुज्म होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-११५ से 'ह' वर्ण की और 'य' वर्ण की परस्पर में वैकल्पिक रूप से व्यत्यय की प्राप्ति, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप गुथ्हं सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप गुज्झ की सिद्धि सूत्र-संख्या २-२६ में की गई है। सहयः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप मय्हो और सभी होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-१२४ से 'ह' वर्ग की धार ‘य वर्ण की परस्पर में वैकल्पिक रूप से व्यत्यय की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप सय्हो सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप सज्झो की सिद्धि सूत्र-संख्या २-२६ में की गई है ॥२-१२४|| स्तोकस्य थोक्क-थोव-थेवाः ॥२-१२५॥ स्तोक शब्दस्य एते त्रय आदेशा भवन्ति वा ॥ थोक्कं थोवं थेवं । पक्षे । थोअं ॥ अर्थ:--संस्कृत शटन स्तोक के प्राकृत रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से तीन आदेश इस प्रकार से होते हैं। स्तोकम् थोक्कं, थोवं और थेवं ।। वैकल्पिक स्थिति होने से प्राकृत-व्याकरण के सूत्रों के विधानानुसार स्तोकम् का प्राकृत रूप थोअं भी होता है। स्तोकम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप चार होते हैं । जो कि इस प्रकार हैं:-थोक्क, थोवं, थे और थोअं । इनमें से प्रथम तीन रूपों की प्राप्ति सूत्र-संख्या २-१२५ के विधानानुसार श्रादेश
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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