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श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के प्रधान प्राचार्य श्री १००८ श्री श्रात्मारामजी महा. सा., शास्त्रज्ञ पं. रत्न श्री कस्तूरचन्दजी महाराज, पं. मुनि श्री प्रतापमल जी महार, श्री मन्नालाल जी भहा. एवं श्री पन्नालालजो महा० आदि सन्त मुनिराजों को भी प्रेरणा, सम्मति, उद्बोधन एवम् महयोग प्राप्त हुआ कि प्राकृत व्याकरण सरीखे मन्थ को राष्ट्रभाषा में समुपस्थित करना अत्यंत लाभदायक तथा हितावह प्रमाणित होगा। तदनुसार विक्रम संवत् २०१६ के रायचूर (कर्णाटक-प्रान्त ) के चातुर्मास में इस हिन्दी व्याख्या प्रन्थ को तैयार किया।
श्राशा है कि जनता के लिये यह उपयोगी सिद्ध होगा। इसमें मैंने ऐसा क्रम रखा है कि सर्व प्रथम मूल-सूत्र, तत्पश्चात् मूल प्रन्थकार की ही संस्कृत-वृत्ति प्रदान की है; तदनन्तर मूल-वृत्ति पर पूरा २ अर्थ बतलाने वाली विस्तृत हिन्दी व्याख्या लिखी है; इसके नीचे ही मूल वत्ति में दिये गये सभी प्राकृत शब्दों का संस्कृत पर्यायवाची शब्द देकर तदनन्तर उस प्राकृत-शबद की रचना में पाने वाले सत्रों का क्रम पाद- पान करते गुण मान्य मानिकी रचना की गई है। यो ग्रन्थ में आये हुए हजारों की संख्या वाले सभी प्राकृत शब्दों की अथवा पड़ों की प्रामाणिक रूप से सूत्रों का उल्लेख करते हुए विस्तृत एवं उपादेय साधनिका की संरचना की गई है। इससे प्राकृत-शब्दों की रचना-पद्धति एवम् इनकी विशेषता सरलता के साथ समझ में आ सकेगी। पुस्तक को अधिक से अधिक उपयोगी बनाने का भरसक प्रयत्न किया है, इसीलिये अन्त में प्राकृत रूपावलि तथा शटर-कोप की भी संयोजना करदी गई है। इससे शब्द के अनुसंधान में अत्यन्त सरलता का अनुभव होगा ।
श्री. पी. एल. धैद्य द्वारा सम्पादित और श्री भांडारकर ओरिएन्टल रीसर्च इंस्टीट्यूट, पूना नं. ४ द्वारा प्रकाशित प्राकृत-व्याकरण के मूल संस्कृत-माग के आधार से मैंने "प्रियोदय हिन्दी-व्याख्या" रूप कृति का इस प्रकार निर्माण किया है। एतदर्थ उक्त महानुभाष का तथा उक्त संस्था का मैं विशेष रूप से नामोल्लेख करता हूं।
श्राशा है कि सहृदय सज्जन इस कृति का सदुपयोग करेंगे। विशेषु किम् बहुना ?
दीय मालिका विक्रमाय २०१६ रायचूर (कर्णाटक)
प्रस्तुतकर्ता उपाध्याय मुनि प्यारचन्द
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