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आचार्य हेमचन्द्र
भारतीय साहित्य के प्रांगण में समुत्थित श्रेष्ठतम विभूतियों में से आचार्य हेमचन्द्र एक पवित्र एवं दिव्य विभूति हैं। सन् १०८८ तद्नुसार विक्रम संवत २१४५ को कार्तिक पूर्णिमा बुधवार हो इन लोकोत्तर प्रतिभा संपन्न महापुरुष का पवित्र जन्म दिन है। इनकी अगाध बुद्धि, गंभोर ज्ञान और चलीकिक प्रतिभा काम करना जैसे के लिये अत्यंत कठिन है। आपको प्रकर्ष प्रतिभा से उत्पन्न महा मंगल-मथ ग्रन्थ राशि गल साढ़े आठ सौ वर्षों से संसार के सह्रदय विद्वानों को श्रानन्द-विभोर करती रही है; तथा असाधारण दीर्घ तपस्वी भगवान् महावीर स्वामी के गूढ़ और शान्तिप्रद आदर्श सिद्धान्तों का सुन्दर रीति से सम्यक् परिचय कराती रही है।
साहित्य का एक भी ऐसा अंग अछूता नहीं छूटा है; जिस पर कि आपको अमर और थलौकिक लेखनी नही चलो हो; न्याय, व्याकरण, काव्य, कोष, छन्द, रम, अलंकार, नीति, योग, मन्त्र, कथा, चरित्र, श्रादि लौकिक, अध्यात्मिक, और दार्शनिक सभी विषयों पर आपकी ज्ञान-परिपूर्ण कृतियाँ उपलब्ध हैं । संस्कृत और प्राकृत दोनों ही भाषाओं में आप द्वारा लिखित महत्वपूर्ण एवं भावमय साहित्य स्त में है। कहा जाता है कि अपने बहुमूल्य जीवन में आपने साढ़े तीन करोड़ श्लोक प्रमाण जितने साहित्य की रचना की थी।
महान् प्रतापी राजा विक्रमादित्य की राज संभा में जो स्थान महाकवि कालिदास का था एवं गुणज्ञ राजा हर्ष के शासन काल में जो स्थान गय-साहित्य के असाधारण लेखक पंडित प्रवर बाणभट्ट का था; वही स्थान और वैसी ही प्रतिष्ठा आचार्य हेमचन्द्र को चौलुक्य वंशी राजा सिद्धराज जयसिंह की राज्य सभा में थो। मारिप के प्रवर्तक परिमात महाराज कुमारपाल के तो आचार्य हेमचन्द्र साक्षात् राजगुरु. धर्म-गुरु और साहित्य गुरु थे !
आपका जन्म स्थान गुजरात प्रदेश के अन्तर्गत अवस्थित "धंधुका" नामक गाँव है । इनके माता पिता का नाम क्रमशः "श्री पाहिनो देवा" और 'श्री चावदेव " था । ये जाति के मोढ़ महाजन थे । आपका जन्म-नाम "चंगदेव" था। आश्चर्य की बात है कि जिस समय में आपकी आयु केवल पाँच वर्ष की ही थी, तभी श्री देवचन्द्र सूरि ने इन्हें "जैन साधु" को दीक्षा प्रदान करके अपना शिष्य बना लिया था । यह शुभ प्रसंग वि० संवत् १९५० के माघ शुक्ला चतुर्दशी शनिवार के दिन संपन्न हुआ था । उस समय में आपका नाम "चंगदेव" के स्थान पर सोमचन्द्र निर्धारित किया गया था ।