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व्याख्याता का वक्तव्य
यह परम प्रसन्नता की बात है कि आजकल दिन प्रतिदिन प्राकृत-भाषा के अध्ययन अध्यापन की वृत्ति उत्तरोत्तर बढ़ रही है। किसी भी भाषा के अध्ययन में व्याकरण का पठन करना सर्व प्रथम पावस्या होता है । . .. . .
श्राचार्य हेमचन्द्र प्रणीत प्राकृत-व्याकरण प्राकृत भाषा के लिये सर्वाधिक प्रामाणिक और परिपूर्ण मानी जाती है । इसका पूरा नाम "सिद्ध हेम शब्दानुशासन" है। यह पाठ अध्यायों में विभक्त हैं, जिनमें से सात अध्यायों में तो संस्कृत व्याकरण की संयोजना है और आठवें अध्याय में प्राकृत-व्याकरण की विवेचना है । प्राचार्य हेमचन्द्र ने प्राकृत-व्याकरण को चार पादों में विमाजित किया है, जिनमें से प्रथम और द्वितीय पाद में तो वर्ण-विकार तथा स्वर-ध्यान से सम्बंधित नियम प्रदान किये हैं तथा अध्ययों का भी वर्णन किया है । तृतीय पाद में व्याकरण सम्बंधी शेष सभी विषय संगुफित कर दिये हैं। चतुर्थपाद में सर्व प्रथम धातुओं का बयान करके तत्पश्चात् निम्नोक्त भाषाओं का व्याकरण समझाया गया है:-(१) शौरसेनो (२) मागधी (३) पैशाची (४) चूलिका पैशाची और (५) अपभ्रंश ।
ग्रन्थका ने पाठकों एवं अध्येताओं की सुगमता के लिये सर्व प्रथम संक्षिप्त रूप से सार गर्भित सूत्रों की रचना की है; एवं तत्पश्चात् इन्हीं सूत्रों पर "प्रकाशिका" नामक वोपज्ञ वृप्ति अर्थात् संस्कृतटीका की रचना की है। प्राचार्य हेमचन्द्र कृत यह प्राकृत व्याकरण भाषा विज्ञान के अध्ययन के लिये तथा आधुनिक अनेक भारतीय भाषाओं का मूल स्थान ढूढने के लिये अत्यन्त उपयोगी है। इसीलिये श्राजकल भारत को अनेक युनीवरमीटीज याने सरकारी विश्व विद्यालयों के पाठ्यक्रम में इस प्राकृत. ध्याकरण को स्थान दिया गया है। ऐसी उत्सम और उपादेय कृति की विस्तृन किन्तु सरल हिन्दी व्याख्या की अति प्रावश्यकता चिरकाल से अनुभव की जाती रही है; मेरे समीप रहने वाले श्री मेघराजजी म०, श्री गणेशमुनिजी, श्री उद्यमुनिजी आदि सन्तों ने जब इस प्राकृत-व्याकरण का अध्ययन करना प्रारम्भ किया था तब इन्होंने ने भी आग्रह किया था कि ऐसे उच्च कोटि के अन्य की सरल हिन्दी व्याख्या होना नितान्त आवश्यक है। जिससे कि अनेक व्यक्तियों को और भाषा प्रेमियों को प्राकृत-व्याकरण के अध्ययन का मार्ग सुलभ तथा सरल हो जाय ।