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________________ ३८. ] * प्राकृत व्याकरण * Re :Au..--.-.--.-.. . -. :.422-2.......... . ____ अर्थः-संस्कृत शब्द 'दशाह' में स्थित 'दश' और 'अह शब्दों का पृथक-पृथक अर्थ नहीं करते हुए तथा इसको एक हो अर्थ-वाचक शठन मानते हुए इस का 'बहुप्रोहि- समाम में विशेष 'अर्थ स्वीकार किया जाय, तो 'दशाह' में स्थित 'ह' व्यञ्जन का प्राकृत-रूपान्तर में लोप हो जाता है । जैसे: - दशाई:- दसारो अर्थान् यादव-विशेष । दृशाई: संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूपान्तर सारो होता है। इस में सूत्र संख्या १.६० से 'श' का 'स'; २-८५ से 'ह' का लोप और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्जिय में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर इसारो रूप सिद्ध हो जाता है । २.८५।। श्रादेः श्मश्रु-श्मशाने । २.८६ ॥ अनयोरादेलुग भवति ।। मासू मंसू भस्सू 1 मसाणं ॥ आर्षे श्मशान-शब्दस्य सीआणं सुसाणमित्यपि भवति ॥ अर्थ:-संस्कृत शब्द 'श्मश्र' और 'श्मशान में आदि में स्थित 'श' व्यञ्जन का प्राकृत रूपान्तर में लोप हो जाता है । जैसे:-श्मश्रः = मासू अथवा मंसू अथवा मस्सू ॥ श्मशानम् मसाणं ।। आर्ष-प्राकृत में श्मशान' शब्द के दो अन्य रूप और भी पाये जाते हैं, जो कि इस प्रकार है:-श्मशानम् = सीआणं और सुसाणं ॥ हमश्रः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप मासू , मंसू और मस्सू होते हैं। इन में से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २.८६ से श्रादि में स्थित 'श' व्यञ्जन का लोप; १.४३ से 'म' में स्थित हस्व स्वर 'प्र' को दीर्घ स्वर 'श्रा' की प्रापि; २-७३ से 'र' का लोपः १.२६० से 'र' के लोप होने के पश्चात् शेष रहे हुए 'श' को 'स' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा घिभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ की प्राप्ति होकर प्रथम रूप मात्र सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप मसू की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२६ में की गई है। तृतीय रूप- श्मश्रः= ) मस्सू में सूत्र-संख्या २-८६ से आदि में स्थित 'श' व्यञ्जन का लोप; २-७६ से 'र' का लोपः १-२६० से 'र' के लोप होने के पश्चात शेष रहे हुए 'श' को 'स्' की प्राप्ति; २-८४ से प्राप्त 'स' को द्वित्व 'स्स.' की प्राप्ति; और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'क' की प्राप्ति होकर तृतीय रूप मस्सू भी सिद्ध हो जाता है। श्मशानम् संस्कृत रूप है। इस का प्राकृत रूप मसाण होता है। इस में सूत्र-संख्या २-८६ से श्रादि में स्थित 'श' व्यञ्जन का लोप, १-२६० से द्वितीय 'श' का 'स'; १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-२५
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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