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________________ Awarendrandiwana * प्राकृत-व्याकरणम् ★ चतुवैपादः ८६७-हसि धातु के स्थान में गुज यह आदेश विकल्प से होता है । जैसे हसति -गुई प्रादेश के प्रभावपक्ष में हसइ (वह हंसता है) ऐसा रूप होता है। --ससि बातु के स्थान में लहस तथा डिम्भ ये दो आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे१-वंसते ल्हसाह, डिम्भाइ (वह गिर पड़ता है),२-परिसते सलिल-वसनम् परिल्हसइ सलिलवसणं (सलिल-जल से युक्त (आद्र) यस्त्र सरकता है। प्रादेशों के अभावपक्ष में संसद (वह खिसकता है) शाप हो जाता ___ ६९-सि धातु के स्थान में --१-~र, २-खोज और ३-बज ये तीन मादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-अस्यति डरइ, बोज्जइ, बज्जाइ आदेशों के प्रभावपक्ष में- तसा (वह करता है) यह रूप बनता है। so---नि उपसर्ग पूर्वक अस् धातु के स्थान में शिम और गुम ये दो मादेश होते हैं । जैसेन्यस्मति-णिमा,णुमइ, (वह रखता है) यहां पर न्यस् के स्थान में रिणम मादि प्रादेश किए गए हैं। ___.७१--परि उपसर्ग पूर्वक प्रस् धातु के स्थान में -१-पलोट्ट, २-पालट्ट और ३-पल्हत्य ये तीन मादेश होते हैं। जैसे-पर्यस्यति-पलोट्टह, पल्लट्टइ, पल्हत्थई (वह विपरीत होता है। यहां पयस् के स्थान में फ्लोट्ट नादि प्रादेश किए गए हैं । ७२-नि उपसर्ग श्वास धातु के स्थान में '' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे---- निश्वसिति झलइ,प्रादेश के प्रभावपक्ष में नीससइ [वह निःश्वास (सांस का छोडना) लेता है यह रूप बनता है। ७३उत् उपसर्गपूर्वक लसि धातु के स्थान में-१-कसल, २सुम्म, ३-मिल्लस, ४-पुलाख, ५- गुळमोहल और ६-आरोष ये छह प्रादेश विकल्प से होते हैं । जैसे-उस्मसति ऊसलाइ, ऊसुम्भह, जिल्लसइ, पुलमाबाद, गुब्जोल्लइ ५४ सूत्र से ह्रस्व (प्रोकार को उकार) हो जाये पर गुम्छुल्लाह, मारोगाइ आदेशों के अभावपक्ष में उल्लसा (वह उल्लास, मानन्द को प्राप्त करता है) ऐसा.रूप बनता है। ८७४-भासिधातु के स्थान में 'भिस' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-भारते भिसई प्रादेश के प्रभावपक्ष में भास(वह चमकता है। ऐसा रूप बनता है। ८७५-असि धातु के स्थान में घिस यह नादेश विकल्प से होता है। जैसे--प्रसाति-घिसद मादेश के विपक्ष में गसह यह भक्षण करता है) यह रूप होता है। ७६ प्रव उपसर्ग से परे प्रहि धातु को 'वाह' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-अबपाहते-पोवाहद आदेश के प्रभाव में मोगाहा [वह अच्छी तरह पहण (हृदयङ्गम) करता है] ऐसा रूप होता है। २७७ --प्राङ् (आ) उपसर्ग पूर्वक रुहि धातु के स्थान में था और वसा ये दो आदेश विकरूप से होते हैं। जैसे-आरोहति चडइ, बलग्गई प्रादेशों के प्रभावपक्ष में-पाहा (वह पढता है) ऐसा रूप बनता है। -मुहि धातु के स्थान में गुम्म और गुम्मड ये दो आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे - हाति गुम्मइ, गुम्पङ प्रादेशों के अभावपक्ष में ... सुज्झइ (बह मोहित होता है) ऐसा रूप बनता है। ५७६-दहि धातु के स्थान में-अहिजल और आलुङ्ग ये दो आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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