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________________ ६७ चतुर्षपादः *संस्कृत-हिन्दी-टीकाद्वयोपेतम* देश होता है। जैसे---प्रमृशति अथवा प्रमुष्णाति-पम्हुसइ (बह स्पर्श करता है अथवा वह चोरी करता है) यहां मश अथवा मुष धातु को म्हुस यह मादेश किया गया है। .ru-पिषि धातु के स्थान में-१-रिणबह. २-णिरिणास, ३-णिरिणम्म, ४--रोज्न पौर ५- मडु ये पांच प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे--पिमष्टि णिवह, णिरिणासइ,णिरिणजइ, रोवइ, चड्डुइ प्रादेशों के प्रभावपक्ष में--पीसह (वह पीसता है) ऐसा रूप होता है। ८५७-भषि धातु के स्थान में भुक्क यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-भवते-भुक्कइ प्रादेश के प्रभावपक्ष में--भसइ (वह भौंकता है) ऐसा रूप बनता है। ..., कृषि धातु के स्थान में-१-कट, २-सामरह, ३-अच, ४-प्रपन्छ, ५----- यज्छ और ६--आइञ्छ ये ६ भादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-कर्षति कड्ढा, साअड्ढद, अचह, प्रणा , अयन्छ , पाइन्छइ आदेशों के अभावपक्ष में--करिस (वह कर्षण करता है, खींचता है) यह रूप बनता है। ८५-असि-विषयक (तलवार को म्यान से खींचना, इस प्रर्थ के बोधक) कृषि धातु के स्थान में अक्खोड यह आदेश होता है। जैसे-असि कोशात् कर्षति प्रक्खोडे (वह तलवार को म्यान से बाहिर खींचता है) यहां पर कृषि धातु को प्रक्खोड यह प्रादेश किया गया है। ': ८६o-गवेषि धातु के स्थान में-१-हल्ल, २-शुण्डोल, ३-गमेस और ४-पत्त ये चार प्रादेश विकल्प से होते हैं । जैसे-गवेषयतिम्-तुण्डुलाइ, ढण्ढोलाइ, गमेसइ, उत्तइ आदेशों के प्रभावपक्ष में गधेसइ (यह गवेषणा करता है) यह रूप बन जाता है। ......८६१- रिलषि धातु के स्थान में-१-सामग,२-प्रवयास और ३-परिअन्त.ये तीन मादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-शिलष्यति सामग्गइ, प्रवयासइ, परिमन्तइ प्रादेशों के अभाव मेंमिखेसह (बह आलिङ्गन करता है) यह रूप बनता है। .., ८६२ ममि धातु के स्थान में चोप्पड यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे--म्रक्षते-चोपडइ अादेश के अभाव में-- मक्य (बह चोपड़ता है। ऐसा रूप होता है। ५६३--काक्षि धातु के स्थान में-१ आह, २-अहिलङ्क ३-अहिलसा, ४ वटवा, ५----- धम्क, ६ मह,७-सिह और विलुम्प ये पाठ प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-काङ्क्षले प्राहइ, अहिलङ्घइ, अहिलखाइ, बच्चाइ, वम्फइ, महइ, सिहइ, विलुम्पइ, आदेशों के प्रभावपक्ष में कई (वह काङ्क्षा-इच्छा करता है ऐसा रूप होता है। ९६४.--प्रति उपसर्ग पूर्वक ईक्ष धातु के स्थान में-१-सामय, २-विहीर और ३...-विरमाल ये तीन प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-प्रतीकले - सामयाइ, बिहीरइ, विरमालइ प्रादेशों के प्रभावपक्ष में पडिक्सह (बह प्रतीक्षा करता है) ऐसा रूप होता है। ५६५----तक्षि धातु के स्थान में १-सच्छ, २-वच्छ, ३---रम्प और ४-रफ ये चार प्रादेश विकल्प से होते हैं । जैसे-तक्षते- तन्द्रा, चच्छह, रम्पइ, 'रस्काइ, प्रादेशों के मभावपक्ष में--- सक्खइ (वह छीलता है) ऐसा रूप होता है। - ८६६ -वि उपसर्ग पूर्वक कसि धातु के स्थान में कोस और बोसट्ट ये दो आदेश विकल्प से होते हैं । जैसे--विकसति-कोप्रासइ,वोसट्टइ,प्रादेशों के प्रभावपक्ष में-विअसइ (वह विकसित होता है। ऐसा रूप बनता है।
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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