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________________ चतुपाद: * संस्कृत-हिन्दी-टोकाद्वयोपेतम् * रम्यस्य रववरण:--- सरिहि न सरेहि न सरवरे हि न वि उज्जाण-वहिं । देस रवण्णा होन्ति बह !, निवसन्तेहि सुनहि ॥१०॥ अद्भुतस्य ढक्करि:-हिडा ! पई एह बोल्लिो मह अगइ सय-बार । फुट्टिसु पिए पवसन्ति हउँ भण्डय ! ढक्करि-सार ! ॥११॥ हे सखीत्यस्य हेल्लिः । हेल्लि ! म झसहि पाल [३७६,४] पृथक्पृथगित्यस्य जुअंजुमः एक्क कुडल्ली पञ्चहि रुद्धी तह पञ्चहें वि जुजुभ बुद्धी। बहिणुए ! तं घर कहि कि नन्द जेत्यु कुडम्बउँ अध्यण-छन्दउँ ॥१२॥ मूढस्य नालिम-वढी-जो पूर्ण मणि जि खसफसिहप्रउ चिन्तइ देइ न दम्मु न स्प्राउ । रह-वस-मिरगुल्लासिड'घरहि फोटु जुणको लालिउ ॥१३॥ दिवे हि विदत्तउँ खाहि बढ़ ! [४२२,४] नवस्य नवखः । नवखी क वि विसगण्ठि [४२०, ४], अवस्कन्दस्य दडवड:-- चले हि चलन्ते हि लोधणे हिँ जे तई दिट्ठा बालि !। तहि मयरद्धय-दडवाउ पडइ अपूरइ कालि ॥१४॥ यदेश्छुड:-छुडु अग्घा यक्साउ [३८५,४] संबन्धिनः केर-तणी-- गयउ सु केसरि पिनहु जलु निश्चिन्त हरिणाई !। जसु केरए हुंकारडएं मुहहुँ पडन्ति तृणाई ॥१५॥ मह भग्गा अम्हहं तणा [३७६,४] मा भषोरित्यस्य मब्भीसेति स्त्रीलिङ्गम्---- सत्थावस्थह पालवण साह वि लोड करेइ । प्रावन्नहँ मम्मीसडी जो सज्जणु सो देइ ॥१६॥ यद्यदृष्टं तत्तदित्यस्य जाइट्ठिा-- जइ रच्चसि जाइटिपए हिनडा! ,मुद्ध-सहाव!। लोहें फुट्टणएण जिवं घणा सहेसइ ताव ॥१७॥ १०६४-हुहुरु-घुग्घादयः शब्द-चेष्टानुकरणयोः ।।४।४२३३ अपभ्रशे हुहर्वादयः शब्दाऽनुकरणे, घुग्घादयश्चेष्टाऽनुकरणे यथासंख्यं प्रयोक्तव्याः ।। मई जाणिजे बुड्डीसु हउँ पेम्म-द्रहि हुहरु ति । नवरि प्रचिन्तिय संपडिय विप्पिय नाव झड त्ति ॥१॥ आदिग्रहणात्- खण्जइन उ कसरक्केहि पिज्जइ न उ घुण्टेहि ।। एम्बइ होइ सुहच्छडी पिएं दिढ़े नयणेहिं ॥२॥
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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