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________________ चतुर्थपादः * संस्कृत्त-हिन्दी-टीकाद्वयोपेतम् * माणि पणदुइ जइ न तणु तो देसडा चइज्ज । मा दुज्जण-कर-पल्लवे हि दसिज्जन्तु भमिज्ज ॥४॥ लोणु विलिज्जइ पाणिएण अरि खल-मेह ! म गज्जु । वालिज गला सु झुम्पड़ा गोरी तिम्मद अज्जु ।।५।। मनाको मगाउं । विहथि पणदुइ बाकुडउ रिद्धिहि जण-सामन्नु । ___किं पि मणाउ मह पिग्रहो ससि अणुहरइ न अन्नु ॥६॥ १०९०-किलाऽथवा-दिवा-सहन्नहः किराहवइ दिवे सहुं नाहि ।।४।४१६। अपनशे किलाऽऽदीनां किराऽऽदय आदेशा भवन्ति । किलस्य किरः। किर खाइन पिप्राइन विवइ धम्मिन बेच्वइ रूघडउ। इह किवणु न जाणइ जह जमहो खणे ण पहुचाई अडउ ॥१॥ प्रथवो हवाइ । अहवइ न सुवंसह एह खोडि । प्रायोऽधिकारात्-- जाइज्ज तहि वेड लभ पियहीं पमाणु। अमावद तो पाणिग्रह हवा तं जि निवाणु ॥२॥ दिवो दिवे । दिवि दिवि गङ्गा-हाणु । [३६६,४] । सहस्य सह। जउ पवसन्तै सहुँ न गय न मुअ विश्नोएं तस्सु । ___ लज्जिज्जइ संदेसडा दिन्ते हि सुहय-जणस्सु ॥३॥ नहे हिं। एतहे मेह पिप्रन्ति जलु एतहे वडवानल पावट्टइ । पेक्खु गहोरिम सायरहो एक्क वि कणि नाहि प्रोहट्ट ॥४॥ १०६१-पश्चादेवमेवैवेदानी-प्रत्युतेतसः पच्छइ एम्वइ जि एम्वहि पच्चलिड एतहे । ८ । ४ । ४२० । अपभ्रशे पश्चादादीनौ पच्छ इत्यादय आदेशा भवन्ति । पश्चात: पच्छ । पञ्छई होइ विहाणु [३६२,४] । एवमेवस्य एम्बइ । एम्वइ सुरउ समत्तु [३३२,४] । एवस्य जिः। जाउ म जन्तउ पल्लवह देखाउँ कइ पय देइ । हिनाइ तिरिच्छी हउँ जि पर पिउ डम्बरई करेइ ॥१॥ इदानीमः एम्वहिं । हरि नच्चाविउ पङ्गणइ विम्हाद पाडिउ लोउ ।। एम्वहि राह-पोहरहं जं भावइ त होउ ।।२।। प्रत्युत्तस्य पच्चलिउ । साब-सलोणी गोरडी नबखी क वि विस-गण्ठि । मा पच्चलिमो सो मरइ जासु न लग्गइ कण्ठि ॥३॥ इसस इसहे । एत्तहे मेह पियन्ति जलु। [४१६,४] ।
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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