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________________ Mondament २४५ AAAAAAAMAAVAMAAVarnmarate.aur.aar.. चतुथंपादः * संस्कृत-हिन्दी-टीकाद्धयोपेतम् * गया है। उकार का उदाहरण भ्रमर ! प्रश्राविनिम्बके कानपि विवसान बिलम्बस्व । घन-पत्रवान छायाबहुलः फुल्लति यावत् कदम्बः ।।२।। अर्थात्-हे भ्रमर । जब तक धने पत्तों वाला तथा विस्तृत छाया बाला कदम्ब नामक वृक्ष विकसित नहीं हो पाता तब तक यहीं नीम के वृक्ष के ऊपर कुछ दिन व्यतीत कर । यहां पर-विलम्बस्व विलम्बु (तू व्यतीत कर), इस पद में पंचमी के हि इस प्रत्यय के स्थान में उकारादेश किया गया है। एकार का उदाहरण प्रिय । इवानों पर भस्ल करें, मुश्च त्वं करवालम् । येन कापालिकाः पराकाः लान्ति अभग्नं कपालम् ।।३।। अर्थात-हे प्रीतम ! तु तलबार को छोड़ दे और अब भाले को हाथ में ग्रहण कर,ताकि बेचारे कापालिक [शैवसम्प्रदाय के अन्तर्गत एक उपसम्प्रदाय, इस सम्प्रदाय के लोग अपने पास खोपड़ी रखते हैं,और उसी में भोजन बना कर या रख कर खाते हैं, वामाचारी] अखण्डित कपाल (खोपड़ी) को प्राप्त कर सके। यहां पर १-कुरु-करें (तु कर) इस पद में पंचमी हि प्रत्यय के स्थान में एकार का आदेश विकल्प से किया गया है । २-स्मर- सुमरि यहां पर प्रस्तुत सत्र से हि प्रत्यय के स्थान में वैकल्पिक इ यह प्रादेश किया गया है किन्तु आदेश के अभाव-पक्ष में स्मर-सुम रहि [तू याद कर ऐसा रूप बनता है, वैकल्पिक होने से यहां पर प्रस्तुत सूत्र से पंचमी के हि प्रत्यय को यह आदेश नहीं हो सका। इत्यादि का उल्लेख करके वृत्तिकार फरमाते हैं कि इसी प्रकार अन्य उदाहरण भी समझ लेने चाहिएं। १०५६-अपभ्रंशभाषा में भविष्यदर्थ-विषयक [भविष्यत्काल के अर्थ को अपना विषय बनाने वाले] ति मादि प्रत्ययों के स्य के स्थान में विकल्प सेस का प्रादेश होता है। जैसे दिवसा यान्ति बेगः पतन्ति मनोरयाः पश्चात् । यबास्ते सन्माभ्यते भविष्यति (इति) कर्वन् मा आस्स्य ||| अर्थात्-दिन शोधता से व्यतीत हो जाते हैं, और मनुष्य के मनोरथ पूर्ण नहीं हो पाते, वर्तमान में जो कुछ है, उसी का प्रादर करो और भविष्य की प्राशाएं मत बांधो। यहां पर-भविष्यतिम् होसइ होगा), इस पद में भविष्यदर्थक त्यादि प्रत्ययों के स्य को 'स' यह आदेश विकल्प से किया गया है, आदेश के प्रभावपक्ष में-भविस्यति होहिइ (होगा) यह रूप बनता है। * अथं धारयादेश-विधिः* १०६०-क्रियेः कोसु । । ४ । ३८६ । क्रिये इत्येतस्य क्रियापदस्याऽपभ्रशे कोसु इ. त्यादेशो वा भवति । - सन्ता भोग जु परिहरइ, तसु कम्तहों बलि कोसु । तसु दइवेण वि मुण्डियउँ जसु खल्लिहडउँ सीसु ॥१॥ पक्षे। साध्य मानाऽवस्थात् क्रिये इति संस्कृत-शब्दादेष प्रयोगः । बलि किज्जा सुनएस्सु [३३८,४]1 १०६१...-भुवः पर्याप्तो हुसवः । ८ । ४ । ३६० 1 अपभ्रशे भुवो धातोः पर्याप्तावर्थे
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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