SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्राकृत-व्याकरणम् * चतुर्थपावा ___यहां पर-१-इन्छय- इच्छहु (तुम चाहते हो),२-वस-देहु (तुम दान दो) और ३-मार्गयत-मग्गहु (तुम याचना करों), इन तीनों पदों में मध्यमपुरुष के बहुवचन को ह यह प्रादेश विकल्प से किया गया है। प्रादेश के भावपक्ष में साथ का इसछह (तुम चाहते हो) यह रूप बनता है। इसी तरह प्रादेशाभावपक्ष में अन्य रूपों की भी कल्पना कर लेनी चाहिए। १०५६-अपभ्रंश भाषा में त्यादिसम्बन्धी (वसमानादि कालिक) अन्त्यत्रय (उत्तमपुरुष) का जो माध (पहला) वचन है, उसके स्थान में यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे विधिः सिनाटयतु, पोषयन्तु ग्रहाः, मा धन्ये ! कुरु विषादम् । संपवं कर्षानि वेश्यां यथा यदि राजले व्यवसायः ॥१॥ अर्थात हे धन्ये! हे प्रिये !] चाहे विधि-भाग्य विडम्बित (सन्तप्त.) करे. और ग्रह भी पीडित करें सो भी विषाद करने (दुःखी होने) की आवश्यकता नहीं,क्योंकि यदि मेरा व्यवसाय व्यापार) चल पड़ा तो सम्पत्ति को वेश्या के समान प्राकर्षित कर के छोडें गा। ... यहां पर-----कामिकड्डउँ (मैं खींचता है) इस पद में उत्तमपुरुष के एकवचन को 'ई' यह आदेश किया गया है। २-बलि करोमि सुजनस्व-बलि किज्जउँ सुअणस्सु [धेष्ठ पुरुष के मैं बलिहार जाता है] यहां-करोमि-किज उँ, इस पद में उत्तम-पुरुष के एकवचन को 'उ' यह प्रादेश विकल्प से किया गया है। आवेश के प्रभावपक्ष में कर्षामि-कढामि [मैं सोचता हूं] यह रूप बनता है । इसी प्रकार प्रादेशाभावपक्ष में अन्य रूपों की भी कल्पना कर लेनी चाहिए। १०५७-अपभ्रंश-भाषा में त्यादि सम्बन्धी अन्त्यत्रय (उत्तमपुरुष)का जो बहुवचन है, उसके स्थान में है यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे.... खड्ग-विसाधितं यस्मिन् सभामहे प्रिये ! तस्मिन् देशे यामः । रण-भिक्षेण भग्नाः बिना युद्धन न वलामहे ।।१।। अर्थात-हे प्रिये ! जिस देश में तलवार से अजित (कमाया हुआ धन प्राप्त होगा, वहीं पर जाएंगे। रण के दुर्भिक्ष (प्रभाव) से विनष्ट हुए हम युद्ध के बिना वापिस नहीं लौटेंगे। यहाँ पर-१-लभामहे-लहह (हम प्राप्त करते हैं), २-यामः-- जाहुं (हम जाते हैं, और ३-वलामहे-बलाई (हम लौटते हैं इन पदों में उत्तमपुरुष के बहुवचन को 'उ' यह आदेश विकल्प से किया गया है। आदेश के अभावपक्ष में लभामहे - लहिमु (हम प्राप्त करते हैं। यह रूप बनता है : इत्यादि शब्द के उल्लेख से वत्तिकार फरमाते है कि इसी प्रकार अन्य उदाहरण ? १०५८ अपभ्रंश-भाषा में पञ्चमी (लोद) केहि और सु इन प्रत्ययों के स्थान में इ, उ और ए ये तीन आदेश विकल्प से होते हैं। इकार का उदाहरण, जैसे फुल्जार ! स्मर मा सल्लकी, सरलान् श्वासान मा मुश्च ।। कवला: ये प्राप्ताः विधिवशेन सश्चिर मानं मा मुञ्च ॥१॥ प्रति--हे कुम्जर ! (हे गजराज !) सल्लको नामक वृक्षों को याद मत कर, और सरल श्वासों को मत छोड़ । अर्थात हाँके मत भर । विधिवश (भाग्यवश) जो कत्रल-ग्रास प्राप्त हुए हैं, उन्हीं का भक्षण कर, तथा स्वाभिमान का परित्याग मत कर । यहाँ-पर१-हमर--सुमार,(स्मरण कर),२---मुञ्च- मेलिल (छोड़), और ३-घर-चरि (भक्षण कर) इन पदों में पंचमी (लोट्) के 'हि' इस प्रत्यय के स्थान में 'ई' यह मादेश विकल्प से किया
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy