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________________ *प्राकृत व्याकरणम् * चतुर्षपादः उन कार्यों का निर्देश कर रहे हैं १०२६-अपभ्रंश भाषा में अकारान्त सर्व प्रादि शब्दों से परे प्राए सि प्रत्यय के स्थान में 'हाँ यह अादेश होता है। जैसे-१-यस्मा भवन भागता नहीं होन्त उ प्रागदो जहां से होता हुआ प्राया है], २- तस्माद् भवन मागतः तहां दोमट मागतो हो से होता हुमा प्राता है], :--- स्माद् भवन् आगतः- कहां होन्तउ पागदो [कहां से होता हुआ पाया है] यहां पर प्रकारान्त सर्वनाम यद्, तद् और किम शब्द से परे.माए इसि-प्रत्यय के स्थान में 'हाँ यह मादेश किया गया है। १०२७-अपभ्रंश भाषा में किम् शब्द के प्रकारान्त स्वरूप से परे प्राए असि-प्रत्यय के स्थान में शिहे [इहे] यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-~ यपि तस्याः श्रुटितः स्नेहः मया सह नाऽपि सिसतार !। तत् कस्माद वकाम्या लोबनान्यां दृश्ये (मह) शसवारम् ॥१॥ अर्थात्-हे तिलतार ! [लिल के समान जिस की मांख की तारा-कनीनिका स्निग्ध हो] यदि उस नायिका का स्नेह मेरे से समाप्त नहीं हो पाया है तो फिर वह मुझे वक्र रोषपूर्ण लोचनोंनयनों से क्यों निहारती है ? भाव यह है कि जहां हृदयों में स्नेह-सम्बन्ध होता है, वहां पर नयनों में वक्रता-कटुता नहीं हुआ करती। ___ यहां पर करमा=कि [किस कारण से] इस शब्द में प्रस्तुत सूत्र से इसि-प्रत्यय के स्थान में बिहे [इहे] यह प्रादेश किया गया है। १०२८-अपभ्रंश भाषा में प्रकारान्त सर्व आदि शब्दों से परे पाए सप्तमी के एकवचन द्विप्रत्यय के स्थान में यह आदेश होता है । जैसे---- यस्मिन् कल्प्यते बरेण शर, विद्यते सगेन खड्गः। सस्मिम् सादृशे भट-घटा-निवहे काम्सः प्रकाशयति मार्गम् ॥१॥ ___ अर्थात-जिस युद्ध में बाण से बाण काटा जाता है, तलवार से तलवार काटी जा रही है, योद्धा-सप घटानों के समूह वाले ऐसे युद्ध में मेरा कान्त [प्रीतम] मार्ग प्रकाशित करता है, योद्धाओं को युद्ध-कला की शिक्षा दे रहा है। यहाँ पर१-यस्मिन् जहि [जिस में ],२-तस्मिम् तहिं [उस में ] इन शब्दों के हि-प्रत्यय के स्थान में 'हि' यह आदेश किया गया है। एकस्मिन् अक्षिण श्रावणः, अन्यस्मिन् भाइपला, माधवः महीतल-लस्सरे, गणस्थले शरद । प्रगषु ग्रीष्म; सुखातिका-तिलवने मार्गशिराः, तस्याः मुग्धाया मुखपङ्कजे मावासितः शिशिरः ॥२॥ . अर्थात्-पति-वियोग-जन्य दुःख से व्याकुल किसी नायिका का वर्णन करता हुमा कवि कहता है कि उस की एक आंख में श्रावण और दूसरी में भाद्रपद मास निवास कर रहा है अर्थात धावण-भाद्रपद की भांति उस के दोनों नेत्रों में अश्रुबह रहे हैं । पृथ्वी-तल के स्तर [विछौने] पर माघ मास विद्यमान है, पृथ्वी पर पत्तों का बिछौना किए हुए है। गण्डस्थल [कपोलों पर शरद् ऋतु है-लालिमा के स्थान पर श्वेतिमा आई हुई है। वियोग-जनित उष्णता के कारण अंगों में ग्रीष्मतु-ग्रीष्मता है। सुखासिका [सुख को अवस्थिति] रूप तिलवन [तिलों का बन] में मार्गशीर्ष है। अर्थात् मार्गशीर्ष
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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