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________________ $ चतुर्थपादा ★ संस्कृत-हिन्दी- टीकाद्रयोपेतम् ★ १४७ किन्तु पैशाची भाषा के ९९५ में सूत्र से उस का निषेध हो गया, तथा मार्गणः- मक्कन, यहां पर पैशाचीभाषा के ९७७ में सूत्र से कार को नकार किया गया है। ये दोनों कार्य पैशाची भाषा के हैं, तथापि धूलिका-पैशाची में इन का श्राश्रयण किया गया है । इसीलिए प्रस्तुत ९९९ वा सूत्र कहता है कि चू featureभाषा में ९९६ वे सूत्र से लेकर ९९८ वें सूत्र तक जो कार्य बतला दिए गए हैं, वे तो इस भाषा में होते ही हैं, किन्तु इनके अतिरिक्त ९९५ वें सूत्र से नकार को पकार का निषेध तथा ९७७ वें सूत्र से शकार को नकारादेश प्रादि पूर्व वर्णित पैशाची भाषा के सत्र कार्य भी धूलिकापैशाचिक भाषा में हो जाते हैं। वृत्तिकार ने " एवमन्यदपि ( इस प्रकार अन्य नियम भी जानने चाहिएं ) " यह कह कर पाठकों को सूचना दी है कि पैशाची भाषा के अन्य नियम चूलिका-पैशाची भाषा के किन-किन उदाहरणों में लागू होते हैं, इस की कल्पना स्वयं कर लेनी चाहिए। इस सूचना के साथ ही वृत्तिकार ने चूलिकापैशाची भाषा का प्रकरण समाप्त कर दिया है। बुलिका-पैशाची भाषा के प्रकरण की समाप्ति के साथ ही हमारी प्रात्मगुण- प्रकाशिका हिन्दी टीका में भी इस भाषा का विवेचन समाप्त होता है। अथ अपन शनाकाम् [अथ स्वरविधिः ] १००० स्वराणां स्वराः प्रायोऽपाशै १८१४१३२६| अपभ्रंशे स्वराणां स्थाने प्रायः स्वरा भवन्ति । क, काच्च । वेरा, वीरण । बाह, बाहा, बाहु । पट्टि, पिट्टि, पुट्टि । तर, तिलु, तृषु । सुकिदु, सुकिप्रो, सुकुदु । किन्न, किलिन्नयो । लिह, लोह, लेह । गउरि, गौरि । प्रायो प्रहरणाद्यस्यापभ्रंशे विशेषो वक्ष्यते, तस्याऽपि क्वचित् प्राकृतवत् शौरसेनीवच्च कार्यं भवति । १००१ - स्यादौ दीर्घ ह्रस्वौ । ८ १ ४ ३३० | अपभ्रंशे नाम्नोऽन्त्यस्वरस्य दीर्घ ह्रस्वो स्यादी प्रायो भवतः । सौ | ढोल्ला आमन्त्रये afeteriशाची का हुआ पूर्ण व्याख्यान | ध्यान सहित जो भी पढ़े, प्राज्ञ बने सुनिज्ञान * चूलिका-पैशाचिक - भाषा - विवेचन समाप्त* स्त्रियाम जसि - सामला धण aur aurt | सुवण्ण-रेह कस-बट्ट दिण्णी ॥१॥ गा ढोला ! माँ तु बारिया, मा कुरु दीहा माणु । निए गमिही रतडी दडवड होइ विहाणु ॥ २ ॥ बिट्टीए ! मह भणिय तुहुँ मा करु बहु की दिट्टि । पुति ! सकण्णी भल्लि जिवें मारइ हिश्र पट्ठि ॥३॥ एइ ति घोडा एह थलि एइ ति निसिश्रा खमा । एत्थ मुणीसिस जाणीइ जो न वि वालइ वग्ग ॥४॥
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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