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________________ ૪૬ ★ प्राकृत-व्याकरणम् ★ नृत्यse लीला- पायोक्षेपेण कम्पिता वसुधा । शैला निपतन्ति तं हरं नमत ॥ २ ॥ अर्थात प्रणय (प्रेम) के कारण प्रकुपित (रुष्ट) हुई पार्वती के चरणाओं (चरणों के अग्रभागों) के नखरूपी दश दर्पणों में जिस का प्रतिबिम्ब (परछाई) पड़ रहा है, एकादश- शरीर-धारी ऐसे रुद्रशंकर को तुम नमस्कार करो। भाव यह है कि पार्वती के पात्रों के दश नाखुन दर्पण (शीशे के समान इतने चमकीले हैं कि उन में शिवशंकर को प्रतिमूर्ति स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है । नखों के दश प्रतिबिम्ब तथा एक महादेव स्वयं इस तरह शंकर के ग्यारह रूप बन जाते हैं। इसीलिए कवि कहता है कि ११ शरीरधारी शंकर को नमस्कार करो ॥ १ ॥ चतुर्थपादा fter (faria) के कारण जिस के पादोत्क्षेप (पांव को ऊपर उठाने) से नृत्य करने पर वसुधा (जगतीतल) कम्पित हो गई है, समुद्र उछल पडे हैं, श्रौर पर्वत गिरने की स्थिति में आ गए हैं, उस हर (महादेव) को नमस्कार करो । यहां पर ---१--- गौरी - गोली, २ चरण चलन, ३- तनुषरं तनुधलं, ४ – रुद्र - हरहलं, इन शब्दों के रेफ को लकारादेश किया गया है । ees - चूलिका-पैशाचिक भाषा में भी दूसरे प्राचार्यों के मत से आदि में वर्तमान (शब्द के प्रारम्भ में विद्यमान वर्ग के तीसरे और चौथे वर्ण को तथा युज् धातु के तीसरे वर्ण को पहला और दूसरा वर्णन नहीं होता । भाव यह है कि चूलिका-पैशाचिक भाषा के विद्वान कई एक प्राचार्यो की ऐसी मान्यता है कि यदि वर्ग का तीसरा वर्ण शब्द के आदि में हो तो उसे पहला वर्ण नहीं होता, इसी तरह यदि वर्ग का चौथा वर्ण शब्द के आदि में हो तो उसे भी वर्ग का दूसरा वर्ण नहीं हो पाता । इस के अतिरिक्त, धातु के जकार को वर्ग का प्रथम वर्ण अर्थात् चकार नहीं हो सकता । जैसे-१पतिःगती (गमन, जाना), २ -- धर्मः - यम्मी (प), ३ जीमूतः जीमूतो (बादल), ४--: झच्छरो (ढोल), ५ – अमरुकः डमरुको (डमरु), ६ ढक्का ढक्का (बडा ढोल), ७ -- दामोदरः = दामोतरी (श्रीकृष्ण), ८ - बालकः - बालको (बच्चा), ६ - भगवती भकबती (भगवत्स्वरूपा नारी), १०नियोजितम् = नियोजित ( काम में लगाया हुआ ) इन उदाहरणों में वर्ग के यादिभूत तीसरे वर्ण को पहला वर्ण तथा चौथे वर्ण को दूसरा वर्ण नहीं हो सका । नियोजितम्, यह युज् धातु का उदाहरण है। यहां कार श्रादिभूत नहीं था, किन्तु विशेषरूप से युज् धातु का निर्देश होने से इस के अकार को चकार नहीं हो सका। इस सूत्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि आदिभूत (शादि में विद्यमान) वर्ग के तीसरे वर्ण को पहला तथा चौथे वर्ण को दूसरा वर्ण बनाने का जो विधान है, यह वैकल्पिक है, किसी श्राचार्य के मत में यह कार्य हो जाता है और किसी को यह कार्य इष्ट नहीं है । EEE - चूलिकाशाची भाषा में "वर्ग के तृतीय वर्ण को पहला तथा चतुर्थ वर्ण को दूसरा वर्ण होता है" आदि जो विधिविधान कहा गया है, इस से ग्रन्थ जी शेष कार्य हैं, वे सब पहले कही पैशाचिक (पैशाची भाषा के तुल्य होते हैं । भाव यह है कि चूलिका पैशाची के जो नियम बताए जा चुके हैं इन के अतिरिक्त, इसकी सब नियमावलि पेशाची भाषा के समान ही जाननी चाहिए। जैसे – १ – नगरम् करं (शहर), २- मार्गण :- भक्कनी (याचक), इन शब्दों में नकार को णकार नहीं होता और णकार को नकार हो जाता है। इसी प्रकार शेष नियमों के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। इन प्र योगों को दिखलाने का उद्देश्य यह है, कि नकर के नकार को २२९ वे सूत्र से गकारादेश की प्राप्ति थी -
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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