________________
(६७)
प्रायसु भयउ सुहर रण चलइ, ठो ठा के विसखाती करइ । के कर साजइ करवालु, केउ साजि लेहु हथियारु ॥४७६॥
बुद्ध की देदारी का वर्णन केउ माते गंबर गुडहि, केउ सुहर साजि रण चढइ । केउ तुरीन पाखर घालि, केउ प्रावध लेइ सभालि ।।४७७।। केउ टाटण जूझग लेइ, केउ माथे टोपा देइ । केउ पहरइ आगिसनाह, एसे होइ चाले नर नाह ।।४७८॥ कोउ कोंतु लेइ कर साजि, कोउ असिवर नीकलई माजि । कोउ सेल सम्हारइ फरी, कोउ करिहा साजे छुरी ॥४७६॥ केउ भरगइ वात समुझाइ, इन सुहडनि हइ लागी वाई । जिहि है रूपिरिण हरि पराग, सो नरु नहीं तिहारै मान ।।४८०॥
एक ठाइ सव खत्री मिलहु, घटाटोप होई जूझरण चलहु । । पोछी वृधि जिन करह उपाउ, अव योभयउ मरण कउ चाउ ॥४८१।।
(४७६) १. निसागोहू (ग) २. टाटर टोपनि सिरि परि धस्पा (क) गडे होइ उसारपती कराऊ (प) ३. केइ कमरि कसहि (ग) कोइ (ख)
(४४७) १. जात रथि (ग) रथ (ख) २. अंबारी (ख) ३. मायुध (ग)
(४७८) १. जोसण (ग) २. टोपी (ख) ३. अंग (क ग) ४. एण माहि (फ ख ग)
(४७६) १. रण (ग) २. नीकलए (क) नीकालहि (ख) लेहि रण ३. बरी (क) करी (ग) ४. हायिहि (ग)
(४०) नोट---प्रथम द्वितीय चरण ग प्रति में नहीं है।
(४८१) १. मासु रणि (ग) २. जूझरण (ख) करी सुम्ह (ग) मूल पाठ खत्री ३. उरिय (क) कछु (ग) ४. इव हियो (क) हह हइ (ग) ५. कउ ठाउ (क) कच बार (ख) का गाउ(ग)