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निकुल कुवरु तउ परिषुसारु, तोपह कोंत पाहि हथियारु । अव हद भयो मरण को ठाउ, मोपह सपिरिण प्राणि छिडाई ।४७११ तुहि नारायण हलहर भए, छल करि फुरिण कुडलपुर गये । तवहि वात जाणी तुम्ही तरणी, चौरी हरी प्राणी रूकिमिणी॥४७२।। मयरबउ जपइ तिस ठाइ, अब किन पाई भिरहु संग्राम । बोल एकुह वोलो भलो, तुम सब खत्री हउ एकोलो ॥४७३।। प्रद्युम्न की ललकार सुनकर श्रीकृष्ण का युद्ध
के प्रस्ताव को स्वीकार करना वस्तु--निमणि को यो तहा महमहण। जाणे वैशुदरु घृत ढल्य उ, जाणिक सिंह वन मा गाजिउ । रणं सायर थल हलिउ, सयन संबनि जादवन्हि सजिउ । भीउ गजा लइ तहि चलिउ, अर्जुन लिउ कोवंड । नकुल कोपि कर कोंत लउ, तउ हल्लिउ वरम्हंड्ड ॥४७४।।
चौपई साजह साजहु भयउ कहलाउ, भयउ सनद्ध'उ जादमराउ । हैवर साजहु गैवर गुरहु, साजहुइ मुहड आजु रण भिडहु ॥४७५॥
१४७१) १. सोहइ इत्तु तोहि कुता हथियारु (ग) नोट-ख प्रति में चौथा चररा नहीं है
(४७२) १. बलि परिण (क) २. जाई (क)
(७४) १. राड (ग) २. घिउ (ग) ३. जणु (ख) जासु (ग) ४, गहरिण (स) ५. सुर सायर तक चलो (क) रणं साया महि उछलियउ (ख) बारगज सेषनु मेह उछला ६. मयल जाम (क) सयन जहि (ख) शु सेनु मीसानु विज्ज (ग) ७. हलहरि हलु प्रायलिज (ख) ८. फाटड (क) हाल्या (ग) मूलप्रति मेंमहिउ पाठ है।
(४५४) १. धावडू (म)
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