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________________ ( ५ ) सभा में स्थित प्रत्येक वीर को सम्बोधित करके युद्ध के लिये ललकारना तू मारायण मथुराराउ, तई कंस भान्यो भरिवाउ 1 जरासंध तइ वधौ पचारि, मोपह रूपिरिण प्राई उवारि ॥४६५॥ दसह दिसा निसुणो वसुदेव, जूभात तणउ तुम जारणउ भेउ । जादो मिलहु तुम छपन कोडि, वलि करि रूपिणि लेहु अजोडि ।४६६। वलिभद्र तू बलियो वर वीर, 'रण संग्राम पाहि तू धीर । हल सोहहि तोपह हथियारु, मो पह रूपिणि आई उवारु ।।४६७।। तू ही अर्जुन खंडव डहा, तो पबरिष जाणं सबु कवरणु । ते क्यराड छिडाई गाइ, अव तू रूपिणि लेइ मिलाइ ॥४६८॥ भीम गजा सोहहि कर तोहि, पवरिष पाज दिखावई मोहि । रूहारि पाच तू भोजन काइ, अब संग्राम भिडइ किन अाइ ॥४६॥ निसुणि वयरण सहयो जोइसी, करि जोइस काही हो वसी । विहसि वातपूछइपरदवणु,तुमहि सरिस जिणइ रण कवणु ।४७०। (४६५} १. हज (ग) २, कंसह (क) कसाह (ख) ३. बंधिउ (क) जीतिया (ग) बांधियउ (ख) ४. लोहे (प) ने छ (ग) . (४६६) १. होवह (ग) २. दिसार (क ख ग) ३. झूझ (क) जूझण (ग) ४ बलिए (ग) ५. बहोरि (क ख) (४६७) १. बलिभउ तह गुरुमा गंभीर (ग) २. साहस धौर (ग) ३. वीर (ख) ४. हलु सोहितौ (ग) ५. यसकरि (ग) ६. प्राज (ग) (४६८) १. खंडच वरण बहश (क) खंडा वरण वह्ल (ग) धगुफ परशु (ख) २. छुडाइ (क) फिन पाइ (ग) (४६६) १. गदा (क) २. प्रवाहि प्राइ मुरझहि रण माहि (ग) (४७०) १. करि जसका सज़ होसी (क ख) गिरिराज्योइस का साहज इसी (ग) २. दलदल माहे रणि जीत कवण (ग) नोट---चौथा चरण के प्रति में नहीं है।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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