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वस्तुबंध--ताम कोप्यो भाई मयरुद्ध रण तोडई भड अतुल बल, लउ मान जादम असेसह । विहाउ रण पांडवह, जिणऊ रणि सव्वह नरेसह ।। नारायण हलहर जिगिवि, सयलह करउ संघार । पर कुरवि जिपवरु मुहवि, सामिउ नेमि कुमारु ॥४६१॥
चौपई मयगु चरितु निसुणहु सत्रु कवरणु, नारायणु जुझइ परदवणु । बाप पूत दोउ 'रण भिरे, देखइ अमर विमाणाह चढे ॥४६२॥ रुक्मिणि की बांह पकड़ कर यादवों की सभा में
ले जाकर उसे छुड़ाने के लिये ललकारना
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कोपारुड मयण जव भय उ, वाह परि माता लीए जाइउ । सभा नारायणु वइठउ जहा, रूपिणि सरिस सपतउ तहा ॥४६३॥ देखि सभा बोलइ परदवगु, तुम सो बलियो खत्री कवणु । हउ रूपिगि ले चल्यों दिखाइ, जाहि वलु होइ सु लेहु छुड़ाई ४६४
(४६१) १, ममरण रणि (क) मयरुद्ध (ख) मूलपाठ समझरि २. रण तोड भड अतुल बल (क ख) धाइ लयर, रण तोडउ भउ ३. जबह (ख) ४. जिणिसु (क) जिणऊ रणि सञ्चह नरेसह (ख) मूल पाठ जिहादु सरि सहकरि नरेसह ५. एकुधि जिपवर मुच्चिकरि (ख) नोद--- बस्तुबंध छन्द ग प्रति में नहीं है।
(४६२) १. सह कौशु (ग) २, बोनों (ग) (४६३) १. कोपालपि (ग) २. कपिरिण (ग) (४६४) १. महि (क व ग) २. किउणु (ग) ३. जेहा (१) ४. प्राइ, (फ ख)