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________________ प्रवेशन प्राप्त सकने के कारण दुत का वापिस लौटना अइसो जाणिति वाहुडि गए, हलहर प्रागइ ठाढे भए । वाभरण एक वाडह पडउ, जारिण सु दिवसु पंचकउ मडउ ॥४३॥ ! तिन पह हम न लइ पयसारु, रुधि पडिउ सो पवलि दुवारु। गहि गोडउ जउ जालइ ताहि, मरइ सु वंभरगु हन्या पाहि ॥४४०॥ स्वयं हलधर का रुक्मिणी के पास जाना निसुणि वयण हलहर परजल्यउ, कोपारूढ हो प्रापण चलिउ । जरण दस वीसक गोहण गए, पवरण वेगि रूपिणि पह गए ।४४१। । उभे भए ति सीहद्वार, दीठउ वाभरण परउ दुवार । तउ वलीभद्र पईइ ताहि, उठ.हि विप्र हमि भीतर जाहि ॥४४२।। तव वंभण हलहरस्यो कहइ, सतिभामा घर जेम्वरण गयउ। सरस प्रहार उवरु मइ भरिउ, उठि न सकउ पेट आफरचउ ।४४३। rties (४३९) १. इसउ वयरण (क) अइसन जाणिति (ख) बीठा खंभा (ग) २. वारसद (क) बारिहइ (ख) बारि हइ (ग) (४४०) १. सहि (क) तिहि (स) सो हम कह देइ न पइसारू (ग) २. रहा । घर का बाच (ग) ३. राहि (क) राहे (ख) रालउ (ग) ४. भरई सु वंभव हत्या पाहि (ग) नोट--ग्रह पर ग प्रति में मूलप्रति के ४४० चे पद के प्रागे तथा ४४१३ के पहिले विया गया है । मूलप्रति में--मरइ किमद्द गोहचहि डराहि पाठ है । (४४१) १. पलिउ (क) परजलिउ (प) परजस्पो (ग) २. पुण (ख) 1 मारण्द वहसंदरि छो टल्यउ (ग) ३. साधिहि (ग) ४. घरि (ग) (४४२) १. जाइसीह (क ख) तिसीहउ (ग) २. वारि (क) दोहा वाभए । पाचा सुवारि (ग) ३. कहब हसि बात (ग) . (४३) १. एजो धरि रहइ (ग) २. सरस (क ख ग) ३. मूलप्रति में पहार' पाहै । ४. उबरु (क) बहुत संघरउ (ख) ५. माफरियउ (कपरिउ {) माफर (ग)।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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