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________________ तव वलिभद्र कहै हसि वात, एकर हटा न उठइ खात | थाभण खउ लाल वी होइ, बहुत साइ जाण्इ सदु' कोइ ॥४४४॥ तथइ रिसाइ विप्रइ बहइ, तू बलिभद्र खरौ निरदयो । अवर करइ वाभरण की सेव, पर दुख वोलइ तू केव ॥४४५।। तवइ उठिउ वलिभद्र रिसाइ, गहि गोडउ गहि चल्यउ कढाइ | कहा विप्र कहु दीजइ कालि, बाहिर करि प्राबहु निकालि ।४४६॥ तब हलहर लइ चलीउ कढाइ, पूइ मयणु रुक्मिणी माइ ! एक दात हो पूछ उ तोहि, कवरण वीर यह आखहि मोहि ।४४७। रुक्मिणि द्वारा हलधर का परिचय छपन कोटि मुख मंडल सारु, यह कहिए बलिभद्र कुवारु । . सिंघजूझ यो जाणइ घरण उ, यह पीतियउ पाहि तुमि तरणउ ।४४८ गहि गोउइ बह वाहिर गयो, वांधि पाउ धडज हइ रहउ । देखि अचंभउ हलहरु कहइ, गुपत वीर य कोण अहइ ॥४४६।। (४४४) १, रिटिया भन्नुसरि खात (क) रटिहानउ हटहि बात (ख) रटिकान उही खातु (ग) २. खरउ (ख) जरा (ग) (४४५) १. तर दोषतरु वोलहि देव (म) (४४६) १. लिनि लोयो उचाइ (ग) २. पालि (क ख) गाल (ग) ३, मा देह (क) सुदीज निकालि (ग) (४४५) १. रिसाइ (क) (४४६) १. पीतरिउ (क) पौतिया (ग) . ... . . .(४४६) १. पुद्धि पाइ सुटर हो भयो (फ) बढिउ पाउ बा महा रहिट (ख) बाधा पाउ धरति सहि छया (ग) २. करइ (स) ३. कोइ (ग) ...
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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