SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । महलउ जाइ पहुतउ तहा, बलिभद्र कुवर वइठे जहा । जुगति विगतिहि विनइ घणी, एसे काम कोए रूपिणी ॥४३४।। हलधर के दूत का रूक्मिणि के महल पर माना हलहल कोपि दूतु पाठ्यो, पबण बेगि रूपीगि पह गए। उभे भए जाइ सीहद्वारु, भीतर जाइ जणाइ सार ॥४३५।। तवइ मयण बुधिमह धरइ, मूडउ वेस विप्र को करइ । वडउ पेट तिनि प्रापरणउ कीयउ, फुणि पाडौ दुवारि पडि व्यउ४३६ तवहि दूत बोलइ तिस ठाइ, उठहि विन हम भीतर जाहि । तउ सो वाभण कहइ बहोडि, उठि न सकउ अाइयहु वहोडो ।४३७१ निसुणि बयण ते उठे रिसाइ, गहि गोडउ रालियउ कढाइ । जइ इह कीम्बहूं वाभरगु मरइ, तउ फुरिण इन्हकहू गोहिच चढइ।४३८। (४३४) १. सरत्तउ (क) संपत्तो (ख) संपती (ग) २. बोधी (क) स्वामी मात सुरहि मुझ तरपी (ग) (४३५) १. बलिभद्र (क) २. गि (ग) ३. पाठ (क) पाठक (स) पाठया १) ४. परि (ग) (४३६) १, बूढउ (क ख) बूढा (ग) २. मूलप्रति में 'तहा विपरित पाठ है (४३७) १. प्रानि इह (क) हज न सको प्राये यहोड (ग) (४३८) १ गहि गोडे रालउ इक नइ (क) गोडे दूखहि चलिउ न जाइ (ग) २. जो इहु कयही भशु महए । तउ पुरिण इसु की हत्या चन्द (1) ग प्रति में निम्न पच प्रषिक है सो हम कहु वेहन पइसार, संघि रहवा सो घर का बार। गहि गोडा जे रालउ तोहि. मरइ सु वंभशु हत्या प्राहि ॥४॥
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy