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________________ तव ते जपइ विलखी भइ, हम ही रूपिरिण के घर गई । नाक कान जो देख इ टोइ, नाउ सारसु उठी सध राइ ।।४२५।। निसुणि चरितु चर आए तहा, रूपिरिण रावल बैठी जहा। विटमो नारि सिर मूडे घणे, नाक कान हम काटे सुरणे ।।४२६।। निसुरिण वयण फुणि रूपिणी कहइ, निश्चे जाणौ येहो अहह । काज ताज छोडहि वरवीर, परगट होइ तू साहस धीर ॥४२७॥ __ प्रद्युम्न का अपने असली रूप में होना तव सो पयड भयो परदवरण, तहि सम रूपिन पूजई कवणु। अतिसरूप वहु लक्षणवंतु. तउ रूपिरिण जाणिउ यह पूत ।।४२८॥ वस्तुबंध-जव रूपिरिण दिठ परदवरण । सिर चुमइ आकर लीयउ, विहसि वयए। फूरिंग कंठ लायउ । ___ अव मो हियउ सफलु, सुदिन अाज जिहि पुत्रु प्रायउ ।। (४२५) क प्रति में प्रथम वूसरा वरण नहीं है । १. नाई (क) नाम (स) नाई (ग) २. सिड ऊठे सवि रोइ (ग) (४२६} करवि चरितु घरि पाया तहां {म) २. रोवै (ग) ३. सिय (ग) (४२७) १. निहाउ जाणउ (ख) नीचउ आगो (ग) नविर जाणउ (क) २. कु. इह नहाइ (क) इह को प्रर (ख) ये हो असे (ग) मूलप्रति में 'हरह' पाठ है। नोट---दूसरा और तीसरा नरण मूल प्रति और क प्रति में नहीं है । यहां 'ग' प्रति में से लिया गया है । (४२८) १. मयण (क) मपशु (ख) परगट (ग) २. सरि (ग) तासु रुपि न पूजह कवण (क) सयु को जाएइ सुरर वरण (ख) ३. निज (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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