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कंद्रप वृद्धि करी तंखिणी, सुमिरी विद्या बहु रूपिणी । निजु माता उझिल करि धरइ, रूपिणि अवर मयाई करइ ।।४१८॥
सत्यभामा की स्त्रियों का रूक्मिणि
के केश उतारने के लिये आना एतइ बहु वरकामिणी मिली, अरु नाउ गोहिणि करी चली। अछइ मयाई रूपिरिण जहा, ते वर णारि पहुती तहा ||४१६।। पाइ पडइ अरु विनवइ तासु, सतिभामा पठई तुम्ह पासु । सामरिण जागहु रन का लेड, एलइल मेसजना देहु !!४२०॥ निसुरिण वयण सुदरि यो कहइ, वोल तिहारी साचउ हबइ । निसुरणहु चरित अगांगह तण उ, नाउ मूडिउ सिर आपण उ 11४२१।।
प्रद्युम्न द्वारा उनके अंग काट लेना हाथ आंगुली धरी उतारि, अर मूडी गोहिण को नारि । नाक कान तिनहु के खुरे, फुणि ते सब्ब घर तन वाहुरे ॥४२२॥ गामति निकली नयर मझारि, कम्बण पुरिष ए बिटमी नारि । यहर अचंभउ वडउ विजोउ, हासी करइ नगर को लोगु ॥४२३॥ एते छरण ते रावल गई, सतिभामा पह उभी भई । विपरित देखि पयंपइ सोइ, तुम कवाइ मोकली विगोइ ।।४२४॥
१४१८) १. कपि (ग) (४२०) मूलप्रति में--तुम्हि जिन सामिरिण करण लेहु पाठ है (४२२) १. पडे (ग) २. सेवडे (ग)
(४२३) १. गावत {क ख) गावतु (ग) २. विडंरी (ख) ३. अउर (क) एह (ग) इहरु (ख) ४. वियोग (क) विजोगु (ख) वियोगु (ग)
(४२४) १. फवणे (ख) नाई (ग) नोट-क प्रति में दूसरा और तीसरा चरण नहीं है।