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________________ खूडउ दिछ रिसारणउ जाम, मन विलखाणो रूपिणि ताम । बहुरि मनावइ दुइ कर जोडी, हम भूलो जिन लावहु खोडी ॥४११।। तवहि मयणु जपइ तिहि ठाइ, मन मा कहा विसूरइ माइ । साच उ मयरशु पयासउ मोहि, जिम्व पडि उतरू अाफउ मोहि ॥४१२।। तउ जंपइ मन करहि उच्छाहु, जिम्ब रूपिणि कउ भयउ विवाहु । जिम्ब परदवा पू हडि लयउ, सयलु कथंतरूपाछिलउ कहिउ।४१३। धमकेत हो सो हडि लियउ, फुरिण तह जमसंवरू लै गयउ । मुहिसिहु नारद कहिउ निरूत, प्राजु तोहि घर आवइ पूत ।।४१४॥ अवर वय भुनि कहे पम्वारण, ते सवई पूरे सहिनाणु | अजहु पूतु न आवइ सोइ, तहि कारण मनु विलखउ होइ ॥४१५॥ सतिभामा घर बहुत उछाह, भानकुबर को प्राइ विवाहु । हारी होड न सोधउ काजु, तिहि कारण सिर मुडइ प्राजु ।।४१६॥ : माता पास कथंतर सुण्यउ, हाथ कूटि फुणि माथो धन्योउ । अाज न रूपिणि मन पछिताइ, हउ जग पूत मिल्यो तुहि प्राइ ।।४१७।। (४११) १. खरा रिसाणा बोल्या जाम (ग) खूउ निसुरिण रिसाणउ जाम (ख) २. मत (ग) (४१३) १. जज (ग) (४१४१. सोवत (क तिह सो (ख) (४१५) १. सगला (क) (४१६) १. होड (क) मूलप्रति में 'डोर' पाठ है (४१७) १. तो मा (ख) २. तराज (क)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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