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________________ ( १ ) ... प्रद्युम्न का सभी भोजन का खा जाना चउरासी हाडी ते जाणि, व्यंजन बहुत परोसे प्राणि । माडे वडे परोसे तासु, सवु समेलि गउ एकुइ गासु ॥३८७।। भातु परोसइ भातुइ खाइ, अापुरण राणी वैठि पाइ। जेतउ धालइ सत्रु संघरइ, बडे भाग पातलि उवरइ ॥३८८॥ वाभरण भगाइ निसुरिग हो बाल, अधिक पेट मोहि उपजी ज्वाल | । तिमु तिमु लोगु सयलु परिहरघउ, मो प्रागे सवु कोडा करहु ।।३८६ ।। जहि जेम्वरण न्योते सवु लोगु, तितउ परोसिउ वाभण जोगु । | नारायणु कहु लाडू धरे, तेउ सयल विप्र संहरे ॥३६०।। , तउ रागी मन विलखी होइ. तिहि तो खाइ सयल रसोइ । । यह वाभरणु अजहु न अघाइ, भूबउ भूवउ परिबिलखाइ ॥३६१।। ___ भयरण बोरु यहु बङउ विजोगु, तइ चू नयर सत्रु न्योत्यो लोग। सो काहो जेम्वहिगे प्राइ, इकुइ विमु न सकइ अघाइ ॥३६२॥ (३८७) १. घिधि .ग) ते तउ (ग) ३. भोजन (ग) ४. मंडा (क) मांजे (ख ग) ५. बहुत (ग) ६. सके लि (श ग) सर्वान कीयो एके गासु (क) (३८८) १. ते तउ खाय (ख) २. वडा (ख) ३. अवरइ (क) उबराह (ख) मूलप्रति में 'या' (३८६) १. निवलो लोग सहि परिहरउ (ग) २. फूठा (कप) (३६०) १. जीमण (क ख) ज्योणार (म) २. निउतउ (क) निउते (1) निर्यातह (ग) ३. तिन्ह कद उपस्या वा वियोग (ग) (३९१) १. इहतउ (फ ख) इनतउ (ग) २. सह (र) ३. लाते लाडू नारायण खाइ (क) ४. विललाइ (क ख ग) (३६२) १. बारू (ख) विन (ग) २. नगर काम (ग) ३. जोमहगो (क) जोवहिने (ख)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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