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________________ ( २ ) राणी चितह उपरणी कारिण, काही अवरु परोसो पाणि । भूखउ वाभरण काही करइ, घालि प्रांगुली सो उखलई ॥३६३॥ ! असो वांभण कोतिगु करइ. सव मांडहौति उखली भरइ । मान भंगु राणी कहु कीयउ, मयगु विप्र ते खूडउ भयउ ।।३६४॥ प्रद्युम्न का विकृत रूप बनाकर रुक्मिणी के घर पहुँचना मूडी मूडि नलीयरा लयउ, निहडिउ चलइ कुवडा भयउ । बडे दात विरूपी देह, फुणि सु चलिउ माता के गेह ॥३६५॥ खण खण रूपिरिण चढइ अवास, खण खरण सो जोबइ चोपास । मोस्यो नारद कह्यउ निरूत, आज तोहि घर प्रावई पूत ॥३६६॥ जे मुनि बयण कहे परमारण, ते सवई पूरे सहिनाण । च्यारि प्रावते दीठे प.ले, अरु प्राचल दीठे पीयरे ॥३६७॥ सुकी बापी भरी सुनीर, अपय जुगल भरि आए खीर । तउ रूपिणी मन विभउ भयउ, एते ब्रह्मचारि तहा गयउ ॥३९८॥ (३६३) १. सब पाछउ घरइ (क) सो करप (स) ऐसा केतिग भण कर (ग) __ (३६४) १. सब माहउ उखालि सो भरई (क) सब भागह उ उसलि सो भरइ (ख) सउ मंडा अस्खलि सो भरऊ (ग) (३६५} १. कमंडलु हाणि (ख) नालियरु (ग) २. हाउ भयो (क) भपज () होइ (ग) ३. दातारिव (क) वंत (ग) ४. वितखी (ख) विपिय (ग) ५. बहुडि (क) ६. सुवडिउ (ख) (३६६) १. मुहिस्यो (क) हमलो (ग) व प्रति में प्रथम चरण नहीं है। (३६७) १, वरन (क) वरू (ग) २. पाने (ग) ३. वारि (ख ) ४, अम्बते ५. अंचल (ग) ६. दीसहि (क) हुये (स्व ग) ७. पोयला (क) (३९८) १. पाणप (क) पयोहरु (ख) २. विलमो (क) विसमा (ग)। विभड (ग) ३. इतडउ तापसु वारेहि गया (ग) ४. कह भयउ (ल;
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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