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________________ निसुनहु बात परदबन तणी, मुकलाइ विद्या जूझणी । उपरापदि भरग लाइ, सिंह दहि कुकुवार फरहि ॥३८२॥ राणी बात कहइ समुभाइ, इतु करटहानु लागी वाइ । दूरउ होइ तहि धालइ रालि, नातर वाहिर देहि निकालि ॥३३॥ तउ मयरधउ वोलइ बयणु, साधु अघाणउ भूखे कम्वरणु । खुधा वियापइ सुणइ विचार, हमि कहु मूठिक देहि अहारु ॥३४॥ सतिभामा ता तउ काही करइ, कनक थालु तस प्रागइ धरइ। वइसि विप्र तसु भोजन करहु, उन की वात सयल परिहरहु ॥३८५॥ बैठेउ विषु प्राधासणु मारि, चकला दिन उ प्रागइ सारि । लेकर दीनउ हाथु पखाल, प्राणिउ लोणु परोसिउ थाल ॥३८६॥ (३५२) १. मुकलावइ (ख) २. उपरु (ग) पहते (ख) उपरि (ग) ३. सिर फूटहि कोलाहल करहि (क) सिर कटहि कूवारस करहि (ख) पोटहिं सीसु कूक बह करहि (ग) (३८३) १. इते (ग) २. काइटा (क) कररहि (ग) ३, वाइ (क) पाई (ग) ४. भलइ युरउ (ख ग) ५. तउ (क) जउ (ग) ६. राडि (ग) मूलप्रति में 'बार' पाठ है (३८४) १. सायु (क ख) २, झपउ (ख) ३. ७भा वियापहि (ख) जुड़े विप्प (ग) ४. तू वासा (ख) ५. अधारू (ग) (३८५) १. सब (क ग) २. इसी (ग) ३. सब प्राणि पराइ (ग) ४. तुम (क) तुम्ह (ख ग) ५. उन्ह को (ख ग) इनको (क) ६. सवे (ग) मूलप्रति में 'सुन्ह की पाठ है। (३८६) १. वासउ (क) २. विपु (ख) ३. प्रधारिण (क) ४. लोट (क) ५, अप्पिर (ख) मोट—यह छन्द 'ग' प्रति में नहीं है।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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