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________________ ( DE ) 4 ૧ 3 सुयो पढत उपनो भाउ, वह बाभण भीतर ह्कराउ | राणी तर उ हकार भयउ, लाठी १ अक्षत नोरु हाय करि लेइ, राणी जाइ आसीका देइ । टेकतु भीतर गयउ || ३७६ ॥ 3 तूठी राणी करइ पसाउ, मार्गि विप्र जा उपर भाउ ॥ ३७७ ॥ ५ सिर कंपत वंभरण जव कहइ, बोल तिहारो साचउ ग्रह । २ 3 वयर एकु हो श्राखउ सारु, भूखउ दाभरण देहु ग्रहारु || ३७८ || * राणी तर पटायतु कहइ, भूखउ खर ५ राणी आणइ अर्थ भंडारु, एकुड मागइ 3 कर हा अहई । ॐ एकु प्रहारू ॥ ३७६ ॥ २ हउ एकलउ । तुम विप्र कहत हहु भलउ, तुझि बहु वाभ वेद पुराण कहिउ जो सारु, उति एक श्राहि श्राहारु || ३८०|| २ पैठि विप्र उठ भोजन करहु, उपरा उपर काहे लडहु । 3 ४ एक ति उपरि तल वैसरहि, श्रवरइ विप्र परसपर लडहि ||३८१॥ ( ३७६) १. पंडित ( ग ) २. इह (क) बहु (स्व) इहि (ग) २. चुलाइ (फ) लेह लाइ (ग) इह संति कराइ ( ख ) ( ३७७) १. श्रखत (ख) प्रखित (ग) २. कहूं प्राशिष सो बेदु (ग) ३. जिह (क) जह (ख) जिसु (ग) ( ३७८) १. वह (ग) २. अपड ( क ) ३. प्राथारु (ग) ( ३७९) १. धरणी ततज पाइतु कहर (ख) २. चितु श्राहाइ (ग) सोइउ कसड़ (क) २. कहिहा अहह्न ( क ) ४. कहइ ( ख ग ) ५. श्रापड़ ( क ख ) आफड (ग) ६. तू फिज (फ) बहुधा (ख) उतर (ग) ७. आधारू ( ग ) (३८० ) के प्रति में यह छन्द नहीं है । १. सभि (ग) एकला (ग) ३. सो (ग) - 'ख' प्रति में चौथा चरण नहीं है । (३८१) १. बेसि ( क ) वसि ( ख ) बहसङ्घ (ग) २. भरण (ग) ३. एक नि विप्रति उपरि लहि (क) ४. जलहि (ख)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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