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________________ वाडि मयण पहुतउ जाइ, वहुत विरख दीठे ता ठाइ । कोइ न जाणइ जिनकी प्रादि, बहुत भाति फूली फुनवादि ।३४४। उद्यान में लगे हुये विभिन्न वृक्ष एवं पुष्पों का वर्णन आइ जुही पाडल कचनारु, बबलसिरि वेलु तिहि सारु । कूजउ महकइ अरु करणवीरु, रा चपउ केवरउ गहीरु ॥३४५।। कुठे टगरु मंदारु सिंदूर, जहि वंधे महइ सरोरु । दम्वणा मख्वा केलि अणत, निवली महमहइ अनंत ॥३४६॥ प्राम जंभीर सदाफल घणे, बहुत विरख तह दाडिम्ब तणे । केला दाख विजउरे चारु, नारिंग करुण खोप अपार ॥३४७॥ नीबू पिंडखजूरी संख, खिरणी लवंग छुहारी दाख । नारिकेर फोफल वहु फले, वेल कइथ घणे पावले ॥३४॥ 6 (३४४) १. तिह (क) तहि (ख) । (३४५) १. पाटल (क) पाडले (ख) २. बाउल सेवती सो सभिचार (6) यावल (ख) ३. अबर (ख) ४. राइ (क) राय (ख) ५. चंपा (क) ६, केतकी गहीर (क) फेबडत होर (ग) (३४६) कुंद अगर मंदार सिदूर (क) कुटु टगत मधुरु सिंदूर (ख) २. मह महइ (क) महकइ (ख) ३. ससरीर (ख) ४. दयाउ (क) बवरण (ख) ५. महंत (ख) ६. नीलू (क) नेवालो (ख) (३४७) १. अगरात गिरणे (क) जाजिण गणे (ख) २. विजोरी (क) ३. नारिलो (क) करणा (क) पारणा (ख) ५. स्वीप (क ) मूलप्रति में 'कोपि' पाठ है (३४८) १. अम्ल (क) प्रसंख (ख) मूलप्रति में काय के स्थान परइप पाठ है नोट-३४४ से ३४८ तक के पद्म 'ग' प्रति में नहीं है।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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