________________
प्रद्युम्न की मायामयी की पोड़े जैगर उद्यान पहुँमा फुरिण सो रूप खधाइ होइ, द्वौ घोड़े निपजावइ सोइ । वन उद्यान रावलुहो जहा, घोड़े खात्री पहुतउ तहा ॥३३८॥ बणह मयण पहुतउ जाइ, तउ रखवाले उठे रिसाइ। इह वरण चरण न पाव कोइ, काटइ धास विगुचनि होइ ॥३३६।। कोपि मयरण मन रहउ सहारि, रखवालेसहु कहयउ हकारि । कछुस मोलु भाइ तुम्हि लेहु, भूखे तुरी चरण किन देहु ॥३४०॥ तवइ भइ तिन्हु की मतु हारि, काम मूदरी देइ उतारि । रखवाले बौलइ वइसाइ, दुइ घोड़े ए चरहु अधाइ ॥३४१।। फिरि फिरि घोड़ो वरण मा चरइ, तर की माटी उपर करइ । तउ रखवाले कूटइ हीयउ, द् घोड़े वणु चौपटु कोयउ ॥३४२॥ दोनी तिनसु काम मूदरी, वाहुरी हाथ मयरण के चढी । सो वर वीर पहुतउ तहा, सतिभामा की वाडी जहा ॥३४३॥
(३३८) १. खुधाइ (क ग) २, रावस (क) रखवाला (ख) सुरावल (ग) ३. रचि (क) खचि (ख) खंबो (ग)
(३३६) १. वग महि (क ख ग) २. काच उखास चरावइ जाइ (क) काटइ घासु विगूचाइ सोइ (ख) तीसरा चौथा चरण-क प्रति-तब रखवाला बोला एम धास रावलउ काटई केम (क) ३. कापई तासु विधावई सोई (ख) काढा घास विगूचइ सोइ रंग)
(३४०) स कोप (क) जिन (ग) २. वंशहि जत हारि (ख) बुलाइ (ग) ४. कडू मोल तुम हम पहि लेह (क) कळू मोलि तुम्हि प्रापण लेख (ग) ५. तुम (क)
(३४१) १. तब कीनो (ग) २. घोलहि (क) बोले (ग) ३. लेह (ग) मूलप्रति-वहषइ
(३४२) १. तल को (क ख ग) २. दहि (ख) पोटहि (ग) ३. घउपटु (ग) चउपट (ख) अन्तिम चरण क प्रति में नहीं है।
(३४३) १. मूबी (क ख) २. पानी तहि (ग) ३. कुमर के पटी (क)