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________________ ( ७ ) पडिउ भानु यहु वडउ विजोगु, हासी करइ सभा को लोग । २ 3 यह नारायणुतन कुमार, या समु नाही अवर असवार ||३३२|| भइ विप्र तुम काहे रले, इहि तरूणे पेह बुढे भले । + दुर ते करि च आस, मानकुवर तइ कियउ निरास ||३३३|| २ 3 हलहर भइ वित्र जिरण डरहु, इन्ह घोडे किन तुम ही चढउ । 보 हौ बुढउ चाही टेकरणी, दिखलाउ पवरिष आपणउ ॥ ३३४ ॥ प्रद्युम्न का घोड़े पर सवार होना ૨ जरण दस वीस कुबर पाठए, विग्रह तुरी चढावरण गए। तड वाभरण अति भारउ होइ, तिहिके कहै न सटकइ सोइ । ३३५ । तुरीय चढावरण प्रायो भाण, उलगाणे को नाही मानु । * जरण दस बीस कियउ भरिवाज, चडिबि भान गलि दीनउ पाउ३३६ १ चढइ विप्र असवारिज करइ अंतरिख भो घोरो फिरइ । 3 दिठउ सभा अचंभो भयउ चमतकार करि उपड़ गयउ ||३३७॥ (३३२) १. जब वो (क) तब भया (ग) २. ए (क) इह ( ग ) ३. समान (क) हि समु (ख) इसु सरि (ग) (३३२) १. हंसे (ख) २. हम (क) ते हम (ग) ३. तूर थकी (क) ( ३३४) १. फहइ (क) २. भत ह (ग) ३. पिको (कख) इसु घोड तुम वेग नबिड (ग) ४. चार विकशित ( क ) घाउ बेकएउ ( ख ) चालउ टेकरा (ग) ५. दिजलावर (ख) ६. बल पौरुष (क) ( ३३५) १. पोषम (ख) २. तू चढावण भए ( क ) ३. हि कर कियह न सोइ (क) तिन्ह क ह म चाड सोइ (ख) तिन के कहे न सक प्रति सोइ (ग) ( ३३६) १. उगारण ( क) उलगगो (ख) उलगण (ग) २. बढयो तुरंग दिया गलि पाउ (ग) मूलप्रति - जलमाणे कलमाणु न माहि (३३७) १. (ग) २. (म) ३. ऊपमि (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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