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________________ निसुरिण मयण तुहि कहो विचारु, यह हरिनंदनु भानु कुमारु । । इहि लगि नयरी बहुत उछाहु, यह जु कुवरु जइ तरण उ बिवाहु ।।३२२।। प्रद्युम्न का मायामयी घोड़ा बनाकर वृद्ध ब्राह्मण का भेष धारण करना तहा मयण मन करइ उपाउ, अव इहकउ भानउ भरिवाउ। बूढ वेस विप्र को करइ, चंचल तुरिय मयायउ करइ ॥३२३।। चंचल तुरीयउ गहिरी हिंस. चार्यो पाय पखारे दीस । चारि चारि प्रांगुल ताके कान, राग वाग पहचाणइ सान ॥३२४॥ इक सोवन वाखर बाखर्यउ, पकरी याग प्रागैहुइ चलिउ । भान कुबर देख्यो एकलउ, वाभरण बूढउ घोरो भलउ ।।३२५।। घोरो देखि भान मन रलउ, पूछइ बात विप्र कहु चलिउ । फुणि तहि वाभरणु पूछिउ तहा, यह घोड़ो लइ जहहि कहा ||३२६३१ (३२२) १. एहि लगि (क) इह वर (ग) २. एह सु (क) इह स (ख ग) ३. जिह (क) जहि (ख) जिस (ग) (३२३) १. ताहि (क ग) २. बहु (ग) ३. इष (रू. ४. इसका (ग) इहि कर (ड) ५. बूढउ (क ख) धूडा (ग) ६. तुरी (क ग) दुरिज (ख) ७. मायामई (ग) मायामउ (ख) मयण रथि धरई (ग) (३२४) १. गुहीरी हासु (क) प्रागइ प्रारसी (ग) २. पाउ (क) पाय (स) गाय (ग) ३. परवालिय (क) परवाले (ख ग) ४. ए सासु (क ख) ५. चार (क) पारिसु (ख) ६. जिन्ह के .क) तिन्ह के (ख) जिसके (ग) ७. पिछाणइ (क.) यह र (ख] ८. भानु (फ स) (३२५) १. साखति सो इन पर पाखरउ (क ग) २. पाखर पाखरियउ ख) ३. पकडि (क ख ग) ४. प्राधेरउ (क) प्रागद (ख ग) ५. घोडउ (रुख) घोवा (ग) (३२६) १. घोडा देखत जन मनु चलिउ (ग) २. पूछरण (फ ख ग) ३. चले चाल्यो किहा (ग) ४. जाइसि (क)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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