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________________ सिंघ धुजा डोलइ चोपास, वह जाणइ बलिभद्र अवास । जहि धुज मेढे दोसइ देव, वह मंदिर जाणइ वसुदेव ॥३१७॥ जिहि धुजा विजाहर सहिनारग, बंभरण व इठे पढ़इ पुराण । जहि कलियलु वह सूझइ धरणउ, वह अवासु सतिभामा तण उ ।३१८। । कलकमाल जस उदो करत, जह वह धुजा दीसइ फहरंत । मणिगज मरिण सहि चउपास, वह तुहि माता तणउ प्रवास ।। ३१६।। ! निस रिंग वयण हरषिउ परदवणु, तिहि को चरितु न जाणे कवरण। उतरि विमाणति उभउ भयउ, फुरिण सो मयण नयर मा गयउ ।३२० प्रद्युम्न को भानुकुमार का प्राते हुए देखना चवरंग दल सयन संजूत, भानकुवर दीठउ अावंतु । तव विद्या पूछइ परदम्बनु, यह कलयलुसिह आवइ कम्बनु ।३२१॥ (३१७) १. सिथ (क) २. सहकाइ (क) डोल हि (ख) डोल (ग) ३. ए पारण (क) उ नारा इ (ख, ग) ४. मिहि (क) जहि (ख) जाहि (ग) ५. घज्जु (क) धुजा (उ) वजा (ग) ६. मोढा (क) मोटे (ख) मद (ग) ७. उह (सख ग) मूल प्रति में "सिध (३१म) १. पूझा (क) सुरिणय (ग) सूझा (स) २. भगउ (क ख ग) (३१९) १. सुजइ वइ (क) सुनि उदउ (ख) बहु उदो (ग) २. विपक्ष (क) ३. फराति (क) ४. मरकति मरिण दीसा चुह पासि (क) जाहि बहु पुजा वोसहि पउपासि (ख) मगंज मरिण वीसहि जिस पास (ग) ५. उह (क) तुहि (ख) तुह (ग) (३२०) १. बोल्या (ग) २. तिसु का (ग) ३. माहि (क) महि (ख ग) (३२१) १, सेन (फ) सइन (ग) २, भानू कुत्ररू प्राषइ निरुत (ग) ३. कलिपल सु (क) कलियर स्यउ (ग) ४. कवण (कन्न) फउरण (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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