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नारद द्वारा द्वारिका नगरी का वर्णन वस्तुबंध-भरणइ नारद निसुणि परदवरण ।
यह तु चइ द्वारिकापुरी, बसइ माझ सायरहं णिच्चल ।
जमि भूमिय अथि तुव, सुद्ध फटिक मणि जरिणत उज्जल ॥ कुवा बाडिउ च वणवर बहु धवहर प्रावास । । पहुपयाल जिरणवर भुवरण पउलि कोट चोपास ॥३१४।। । निसुणि जपइ मयगु वरवीर, मुझ वयणु नारद निसुणि । ! फुडउ कहहि णहु गुझु रखहि, देखि मयणु रिणय चित्त दइ ।।
जो जहि तणु उ अवासु ॥३१५॥
चौपई । माझ नयरि धवल हरु उत्तगु, पंच वर्ण मगि जडिउ सुचंगु । मरडू धुजा सोहइ वह घराउ, वह प्रवास सु नारायण तरणउ ।।३१६॥
(३१४) १. एह बसइ (क) यह कहिया (ख) यह ऊंची (ग) २. सदंगी (क) हनियाल (ख) हबवुपरि (ग) ३. जम्म (क ख) जनम (ग) छा तुमह (क) वह माथि तुव (स्त्र ग) करइ राज इकु छत्ति सो हरि ग प्रति में यह घरए पल्ले के स्थान पर है। ५. सो बन्न बन्नी (क) जडित (स्त्र) ६. वाडो वयण वर (क) गाडिउ वयर पथर (ख) वापी वाग वरण (ग) ७. भवल (क ख ग) ८. वह पयार (क) ६. पोवलि कोर चोपास (क) म वयण नारद निसरिण भुरिग किवाणा साप्त (ख) कंचन कलसिहि दीपतिहि बसइ भूवण घजयास (ग)
__ (३१५) १. पर्यपइ (ग) २. मोहिं (ग) ३, कुउउ मुझहि गुह्य रहि (क) कहा साचा जिन गुज्म राखत (ग) ४. कवण गेहि मुह तरणउ सयल चरित मोहि सयल अहि (क) कवण गेहु महु कह तराज सम्खु चहि महु सरस अक्सर (ख) कश्शुमेह इहु किसण तरणौ । सयल भेदु हम बेगि प्राखहु (ग)
(३१६) १. मझि (क ग) मझु (ख) २. जलिय (क) अडिउ (ख) जडे (ग) मलपाठ चजिउ ३. तब खिउ (क) बनु शरणा (स्त्र) ४. एह (क) - (ग)