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________________ प्रभया राणी कीए विनाणा, मुहदसण लगि गये परान । जिहि लगि जुझ महाहो भयो, लइ तप चरणु सुदंसरणु गयउ २७४ । रावण राम जे वाढी राडि, विग्रह भयउ सुपनखा लागि । सीया हडह लंका परजलइ, सब परियण रावण संघरइ ।।२७५।। कौरों पांडो भारथ भयउ, तिहि कुरुखेत महाहउ ठयंउ । अठार खोहणी दल संधारि, द्वई दल बोलइ दोबइ नारि ॥२७६।। कालसंवरू तउ कहइ वहोडी, कनकमाल तो नाही खोडी । पूरब रचित न मेटगा कवरगु, ए वीद्या लेहै परदवरणु ।।२७७।। प्रसुह कम्मु नहु मेटइ कोइ, सुरजनुहु तउ सुवरीयउ होइ। - दोस न कनक तुहि तरणउ, इह लहणौ लाभइ प्रापरणउ ॥२७॥ । (२७४) १. विवाण (ख) २. सुदंसरण (क) सुभसरण (ग) ३. तिहिं स्यों | मास झूझ इहु भयो (ग) ४. संजम लेइ (क) लय तप घर (ख ग)। (२७५) १. जा (ग) २, वापी (क) बंधी (ग) ३. विधन सुरपखि कोनी राज (क) विगाह बलिज सपनखो लाहि (स) विग्रह चस्पा सुपन भय ताकि (1) । ४. सीता (क) सोय (ख ग) ५. हरण (क) हाणु (ख) हड़ो (ग) ६. परजलस्य (क) परजलइ (ख) परजली (ग) मूल पाठ-परजली लाइ ७. सब परिपण (क) - रघउ परियर (ग) मूरन पाठ स्यो पयाल ८. संचरण (क) संघरा (ख) संघटी (ग) (२७६) १, कौरव (क) फोरस (ख) कइरव (ग) २. परिव (क) पांडउ (ब) पंडन (ग) ३. विग्रह (ग) ४. सयउ (ख) ५. तिनि (क) तिन्ह (ख) तिन्हे (ग) । ६. कियो (क) किया (ग) ७. अट्ठारह (फ ग) अठारह (ख) + वुद्ध (क लग) ६. द्रोपदी (क ग) (२७७) १. बोला (ग) २. कंचनमाल (ग) ३. तह लागी (क) न तुमय लोडि (ग) ४. कोइ (ख) तोसरा पोर चौथा चरण 'ग' प्रति में नहीं है। (२७) १. कर्म (क) २. नवि (क) ३ सज्जन ते सुख वरी होहि (क) प्रथम एवं द्वितीय ग में तथा द्वितीय एवं तृतीय चरण व में नहीं है। ३. कनकमाल (क ग) ५. लिखिर्यउ (क) लहरा (ग) ,
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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