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________________ को है; उदाहरणार्थ 'प्राकृत 'पंगल' में उदाहरणों के रूप में संकलित अधिकतर छान जनेतर कवियों के प्रतीत होते हैं। हेमचन्द्र द्वारा उदाहस तथा जैन प्रबंधकारों द्वारा उस त+ छंदों में भी एक बड़ी संख्या जनतर कृतियों के छंदों की लगती है। बौद्ध सिद्धों को रचनाएं तो सर्व चिक्ति ही हैं। इसलिए यह मानना पड़ेगा कि इन दोनों युगों का जनेतर साहित्य भी बहुत था और उसकी खोज अधिकाधिक को जानी चाहिए। कुछ पूर्व तक जैन भंडारों में प्रवेश प्रसंभव--सा था, किंतु अब अनेक भांडण ने अपने संग्रहों को दिखाने के लिए प्रवेश की व्यवस्था कर दी है। उधर उनके संग्रह को सूचीबद्ध करने का भी एक व्यवस्थित प्रायोजन अतिशग क्षेत्र भोमहावीरजी, अयपुर के शोध-विभाग द्वारा प्रारंभ हुआ है, जिसके अन्तत राजस्थान के जन भण्डारों को पोथियों के विवरण संकलित और प्रकाशित किए जा रहे हैं। इस खोज कार्य में अनेकानेक अपनया, संधिकालीन हिंदी तथा प्रादिकालीन हिंदी की रचनाओं का पता लगा है, जिससे हिंदी साहित्य के बहुत से परमोज्बल रत्न प्रकाश में आने लगे हैं। इन्हीं में से एक सबसे उज्वल और मूल्यवान रत्न सघाए, कृत प्रधान चरित है। इसकी रचना विभिन्न पात्रों के अनुसार सं० १३११, १४११ और १५११ में हुई है, किन्तु गणना के अनुसार सं० १४११ की लिथि ठीक प्रातो है, इसलिये वही इसकी वास्तविक रचना तिथि है। इस समय के बास-पास की निश्चित तिथियों की रचनाएनी-गिनी हैं, और जो हैं भी, इतने अधिक निश्चित रूप और पाठ को और भी कम है। प्राकार में यह रचना चउपई वंदों की एक सतसई है और काट्य दृष्टि से भी बड़े महत्व को है। इसलिये इस रचना की खोज से हिन्दी साहित्य के प्राधिकाल की निश्चित श्री दृद्धि हुई है। यह बड़े हर्ष की बात है कि श्री पं० चैनसुखवास न्यायतीर्थ तथा श्री कस्तूरचन्द कासलीवाल शास्त्री द्वारा इसका सम्पादन करा कर प्रतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी, जयपुर के शोध-विभाग ने इसके प्रकाशन की व्यवस्था की है। उसकी इस सेवा के लिये हिन्दी जगत को प्रतिशम क्षेत्र का आभार मानना चाहिए। श्री पं० चैनमुखवास तथा श्री कासलीवाल ने इसका सम्पादन छड़े ही परिश्रम और योग्यता के साथ किया है। उन्होंने इसकी सर्वोत्तम कृतियों का उपयोग सम्पादन में करते हुए उन सब के पाठान्तर विस्तारपूर्वक इस संस्करण में दिये हैं * सम्बाद-मन्द्रमोहन घोष, प्रकाशक-एशियाटिक सोसाइट बंगाल, कलकत्ता । + देखो, हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण, मेयतुङ्ग का प्रबन्ध चिन्तामशि तथा मुनिजिन विजय द्वारा सम्पादित-पुगतन प्रबन्ध संग्रह ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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