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जिनकी सहायता से इस रचना का पाठ निर्धारण पाठानुसंधान को आधुनिक प्रणाली पर भी करने में पर्याप्त सहायता मिलेगी फिर उन्होंने हिन्दी में अर्थ भी सम्पूर्ण रचना का दिया है। हिन्दी की प्राचीन कृतियों का सन्तोषजनक रूप से अर्थ लगाना एक अत्यन्त कठिन कार्य है. कारण यह है कि उसके लिये भाषश्यफ कोषों का अत्यन्त प्रभाव है। हिन्दी के सबसे बड़े और सब मूल्यवान कोष 'हिन्दी शब्द स.गर मे ऐसे ग्रन्थों का अर्थनिर्धारण में कोई सहायता नहीं मिलती। पुरानी हिन्दी का भाषात्मक अध्ययन भी अभी तक नहीं हुआ है, यह भी खेद का विषय है । ऐसी दशा में किसी भी पुरानो हिन्दी कृति का अर्थ देना स्वतः एक कष्ट साध्य कार्य हो जाता है । सम्पादकों ने रचना का यथासम्भव ठीक-ठीक अर्थ लगाने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। उन्होंने रचना की समीक्षा भी विभिन्न दृष्टियों से उसकी भूमिका में को है। इससे सभी प्रकार के पाठकों को, रचना को और उसके महत्व को समझने में सहायता मिलेगी। अतः मैं सम्पादकों को इस सम्पावन के लिये हृदय से बधाई देता हूं। वे इस ग्रन्थमाला से अनेक नव-प्राप्त प्राचीन हिन्दी की रचनाओं का सम्पादन करना चाहते हैं। मेरी यही शुभकामना है कि वे अपने संकल्प को पूरा करने में सफल हों ।
.. इस संस्करण में पाठ-मिर्धारण के लिये वे आधुनिक पाठानुसन्धान की प्रणाली का मामय नहीं ले सके है अन्यथा पाठ कुछ और अधिक प्रामाणिक हो सकता था। प्राशा है कि वे इसके अगले संस्करण में इस प्रभाव की पूर्ति करेंगे ।
माताप्रसाद गुप्त
प्रयाग ३१-४-५६.