________________
पाया
पुरिण गिय मंदिर जाइ पहुत, जमसंबर तब कहइ निरुत । कनकमाल हउ पायउ तोहि, तीन्यो विद्या प्राफइ मोहि ॥२६३|| निसुरिण बयण अकुलानी वाल, जाणि सुहइ वज्र को ताल । जिहिलगी सामी एतउ भयउ, मो पह छीनी कवर ले गयउ ॥२६४॥ वस्तुबंध-एह नरवइ सुरिणउ जब वयणु । विजाहर कारण करइ, तिय चरितु सुणि हियउ कंपिउ | उरुषु रुहडे फाडियउ मोहि सरिसु इरिग अलिउ जपिउ ।। पेम लुवध कारण प्रापी विद्या तीनि । अब मोस्यो परपंचु करइ, कुमर ले गयो छोनि ॥२६५।। ।
(२६३) १. पिरिण (क) फुरिण २. तह (क) ३. प्रापी प्राउ (ख)
ग प्रति में निम्न पाठ है
जम संबरू तब पिल्ला भया, बलु छोड्या घर' कह उहि गया ।
जति मातह घोल एट, तीन्यो विद्या वेगी देह ॥२५२॥
(२६४) १. नारि (ग) २. सिरि बजी पचताल (क) ३. स्यामी (क) स्वामी । (n) ४. एहबा (ग) ५. मुझ (क) मोहि घिगोइ छीनो ले गया (ग)
(२६५) १. जा (क) २. करूणा (ग) करण (ख) ३. भिया (क) तिया (ग) ४. एस रुप मह समझिम (क) कंपड उसुदा थर हर इ (ख) उरू वुद्ध होइ पूरहस्थो (ग) ५. मातु (क) प्राल (ग) ६. लुवधि (क ख) ७. परपंचु (क ख) ग प्रति
वह झूरा तह राउ मनि, देख्न चरितु इह तेणि । प्रेम सुबध का कारणिहि. सजपो विद्या एणि ।।