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________________ ( ४२ ) १६ विद्याओं के नाम हिय-पालोक अरू मोहणी, जल-सोखणी रयण-दरसणी । गगन वयण पाताल गामिनी, सुभ-दरिसरणी सुधा-कारणी ॥१६३॥ प्रगिनि-थंभ विद्या-तारणी, वहु-रूपणि पाणी-बंधणी। गुटिकासिधि पयाइ होइ, सवसिद्धि जाणइ सत्रु कोइ ॥१६॥ धारा-बंधणी वंधउ धार, सोला विद्या लही अपार ।। रयणह जडित अपूरब जाणि, कणय मुकटु तहि अाफउ प्राणि १६॥ आफि मुकट फुणि पायह पडिउ, विहसि वीरू तहा प्रागइ चलउ। सो मयरद्ध, सपत्तउ तहा, हरिसय पंच सहोयर जहा ॥१६६॥ कुमरन्हि पासि मयणु जव गयउ, मन मह तिन्हहि अचंभो भयो । उपरा उपरू करहि मुहं चाहि, दूजी गुफा दिखालइ प्रारिंग ॥१६७।। -- - - . (१९३) १. गेहणी (क) २. सुख फारगो (क) नोट-मूल प्रति से भिन्न प्रथम चरण के हिय के स्थान पर एक संमउ (क) एक मूड़ा (ख) एक सुरहो (ग) (१९४) १. विद्याकारणी (क) २. चन्द्ररूपिणी (क) ३. पवन-वेधरपी (ख) । (१६५) १. डिउ (क) राइ (ग) २. तिरिण (क) तहि (ख) तिह (ग) ३. दीना (क) तो (ग) (१६६) १. ति (क) २. ताहि (ख) तव (ग) ३, प्रागलि (क) प्रगहा (ग) । ४. सरिउ (ग) ५. मइरघउ (क) मइराधा (ग) ६. पहतो (क) प्रायो (ग) ७. हिव पंचसह (क) हहिसयपंच (ख,ग) ८. सहोदर (क ग) (१९७) १. बीजो (क) २. आइ (क) प्राहि (ख) ताहि (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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