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________________ निसुणि वयण हरध्यो परदवणु, चहि गिरवरि जोबइ जिणभवणु । चढी जो देखइ वीर पगारू, विषमु नागु करि मिल्यउ फुकारू ॥१८६।। हाकि मयगु विसहरस्यो भीडइ, पकडि पूछ तहि तलसीउ करइ। देखि बोरू मन चिभिउ सोइ, जाख रूप होइ ठाडो होइ ।।११०॥ दुइ कर जोडि करइ सतिभाउ, पूब्वहुँ हूं तु कण्णख उराउ । राज छाडि गयउ ता पारस, सोलह विधा प्राफी. धरण। ।।१६।। हरि'घर ताह होइ अवतरणु, तुहि निरखि लेइ परदवणु । यह थोणी तसु राजा तणी, लेइ सम्हालि वस्त आपणो ॥१६२।। (१८६) १. हरषिउ (क,ख) कोपा (ग) २. बे घद्धि गिरि (क) चद्धिवि । सिखर (ख) बडि गिरवरि (ग) ३. वंदे (क) ४. चढियउ (क) घडिया जो (ख) परिजे (ग) ५. जोबइ (स्त्र) ६, वरि शृगारि (क) वीच पगार (ख) वोरु पगारि (ग) ७. मिल करइ (क) करि मिलिउ (6) अटिज (ग) ८. चिकार (क) फुकार (न. ग) -- (१९०) १. सिङ्घ (ख) सउ (ग) २ भिदिउ (क ख ग) ३. तिन (क) तिहि (ग) ४. शिरु किया (क) सिक करिउ (स्त्र) सिरु करया (ग) ५, मइ (क) मनि । (ख,ग) ६. विज्ञानव होइ (क) जंपइ सोइ (ग) ७. जखि (क) जक्व (ख) जक्ष (ग) ५. करि (क) हुइ (ख) सो (ग) ६. रूठन कोइ (क) बइठा होइ (ग) १६१) १. कहइ (क,ग) २. पुर्वइ हूं (क) पूरकह (ग) ३. हूँ तउ (क) हित (ग) ४. कार्गखज (स) कनखल (ग) ५. छोडि (क ग) ६. गो (ख) कहखल्या (ग) ७. चरणि (क ख ग) 5, पापी (क) प्रापो (ग) (१९२) १. हरित्थर (क) २. जाइ (क) जाह (स्त्र) ३. अयसारिण (क) । प्रसरणी (ख) ४, लेहि {क प) ५. न राखि (क) ६. लिहि परवमण (क) विद्या . पापणी (ख) ७. हर छोड (क) यवरणो (ख) म. संभारि (क) ६. वसत (क) वसतु (ग) नोट-१९२ वा छंद (ग) प्रति में नहीं है. .
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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