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________________ (४०) ५ . । विजाहर तव करइ पसाउ, बांध्यो छोडि स्यंघरउ राउ । देई पटु पुणि प्राकउ लयउ, समदिउ स्यंघराउ घर गयउ ।।१८४॥ तव कुम्वरन्हि मन विसमउ भयउ, जियत वुअाल हमारउ भयउ । इतडो राइ न राखियउ मान, पालकु आरिण कीयउ परधानु ॥१८॥ तवहि कुवर मिल कीयउ उपाउ, अव भानउ इनको भरिवाउ। सोला गुफा दिखालइ आजु, जैसे होइ निकंटकु राजु ।।१८६॥ कुमारों द्वारा प्रद्युम्न को १६ गुफाओं को दिखलाने के लिये ले जाना एह मंत्र जिण भेटइ कथणु, लियउ बुलाइ कुमर परदमणु । कियो मंतु सव कुमर मिले, खेलण मिसि वरण क्रीडा चले।।१७।। भरणहि कुवर निसुणहि परदवणु, विजयागिरि उपर जिण भवणु। जो नर पूज करइ नर सोइ, तिहि कहु पुन परापति होइ ॥१८८॥ - - -- - (१८५) १. सच्छ (ग) २. कुमर (क) कुमरहे (ख) कुरिहि (ग) ३. विशमो (क) विसमा (ग) ४. कियज (क) भया (ग) ५. जीवत (क) जीवतु (ख) बेखुर (ग) ६. मालु (क) महतु (ख) हालु (ग) ६. गयउ (ख) ययउ (क) कीया (ग) ७. एतर (क) इतनउ (ख) इतना (ग) ८. राखिय (क) राखिउ (ख) राख्या (ग) (१८६) १. सब (क) २. कुमर (क) कुमार (ख) कुरिहि (ग) ३. एहनज (क) इसुका (ग) ४, इव भागा (ग) इस भनि हिया कर भडिमार (स) ५. विखावहि (क ग) ६. निकंटो (क) निकेरह (ख) ७. जिउ हम (ग) (१८७) १. मंतु (ख ग) २. मेटज (क) मेटद (ख) मोटइ (ग) ३. कवरण (क) कजण (ग) ४. चालहु जाहि लेग (ग) ५. भाई सवि (क) ते खिरण माहि (ग) ६. खेलउ (क) अन्तिम चरण का (ग) प्रति में निम्न पाठ है जाइ जो लेग मुचति कोका को चले ! (१८८) १. भाजह (ग) २. देखज (ग) ३. तिह (क) तह (ख) तिन्ह (ग) ४. कोइ (क,ख,ग) ५. तिह को (क) तिसको (ग) ६. पुनि (क) पुष्त (ख,ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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